50.

            प्रकृति रूपी ईश”: - प्रकृति का आधार तत्त्व विशेष हैं - अग्नि - जल - वायु - पृथ्वी तथा इन्हें प्रत्यक्ष करने वाला आधारभूत संयोजक आकाश तत्व है । जो आंखों या अंशों इत्यादि से देखा-जाना नहीं जा सकता । सब कुछ एक से प्रत्यक्ष होने के कारण सब कुछ एक ईश ही है । परन्तु प्रत्यक्षता में उसे तलाशने से केवल निराशा ही हासिल होगी । अतः इस सब का निरन्तर गहन-चिन्तन-अध्ययन-विचार आवश्यक है । सुंगन्ध - दुर्गन्ध दोनों एक ही है तो फिर विचारना होगा कि हमें दुर्गन्ध के अन्दर घुसना चाहिये या सुगन्ध के......? प्रकृति के प्रत्येक जर्रे विशेष का चरित्र निश्चित किया हुआ है इसे हम बदल नहीं सकते । लेकिन अलग-अलग जर्रे विशेष के संयोजनों से नये कम्बीनेशन रूपी जर्रे विशेष-मन वांछित नतीजे प्राप्त करने हेतू अवश्य प्रत्यक्ष किये जा सकते हैं। इन्हीं कम्बीनेशनस को वेदों में बड़े विशाल रूप से ब्यान किया गया है....! इसी चरित्रक निश्चिंतता की वजह से इसे जड़ विशेष कहा जाता है तथा इसी कारण इसे बुद्धि नहीं दी गयी....! फिर इस में ईश की तलाश पूरी तरह से रूह के लिये बैंकरपट होना ही है । यानी के रूह के लिये तो केवल पूरी तरह से घाटे विशेष का ही सौदा है - जिस में कि मूल भी पूरी तरह अवश्य डूब ही जायेगा.....! अतः जीव विचारक को ईश की तलाश स्वयं से ही आत्मिक तौर पर करनी चाहिये - केवल यही इसके स्वयं हेतू तथा प्रकृति के लिये भी हैल्थी (or लाभ) का विषय है.....!

            सूर्य से इस जड़ प्रकृति को आधार मिलता है भौतिक रूप से । यही एक दिन भी सूर्य की सर्मथा प्रत्यक्ष ना हो तो इस सृष्टि की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती यही सत्य है.....! सभी एक दूसरे के पूरक बनाये गये है - अपनी-२ जगह सभी का आवश्यक महत्व विशेष है.....! किसी को भी नकारा या अलग नहीं किया जा सकता । इसलिये एक जर्रे विशेष पर भी डाला गया आंशिक प्रभाव - पूरी सृष्टि चक्र को भी आवश्यक रूप से प्रभावित करता हैं । अतः इसलिये इसे इन्टरकनैक्टिड कहा जाता है.....! मनुष्य जून में रूह को बुद्धि विशेष प्राप्त होती है अतः इसी कारण इसका प्रभाव पूरी सृष्टि पर बहुत भारी पड़ता है और वो भी व्यापक रूप से.....! इसी कारण मनुष्य को कभी भी प्रकृति में दखल नहीं देना चाहिये । विशेषतया अपने लोभ-स्वार्थ के चलते तो भूले से भी नहीं.....!  आज की स्थिति विशेष पूरी तरह से साक्षी है कि मनुष्य ने अपने नाजायज इरादों विशेषों के लोभ में प्रकृति का ऐसा नंगा ब्लातकार किया है कि हवा-पानी-धरती तो पूरी तरह से अपने आधार भूतिक चरित्र विषय से ही पूरी तरह से विमुख हो गए हैं.....! सभी जीवो के सरवाइव होने के लिए कुछ बचा ही नहीं है - सब और केवल जहर ही जहर का माहौल है चाहे हवा हो - चाहे पानी - चाहे अग्नि - चाहे पृथ्वी सब और कहर ही कहर बरस रहा है । सभी चेतन जीव जीवित रहने हेतु स्ट्रगल करते हुए हर पल तड़पते हुए थोड़ा-थोड़ा मरते विशेष जा रहे हैं.....! जिसका एक ही कारण विशेष है - मनुष्य निकृष्ट का स्वार्थ रूपी लोग विशेष.....!

            दूसरी तरफ इन्हीं तत्व विशेषों को बड़ी संख्या में पूजा विशेष जा रहा है.....! पूरी की पूरी प्रक्रिया विशेष ही जहरीली तथा बलात्कारी है सभी तत्वों के हेतु इन्हें जड़ से ही नष्ट कर देने वाली है.....! धरती में केमिकल इंजेक्ट कर दिए - जल में गटर मिला दिए केमिकल सहित - हवा में मैटेलिक पॉल्यूशन भर दिया - सांस लेना मौत को दावत देने जैसा बना दिया गया है.....! इन आवश्यक लाइफ लाइनों को दूषित हो जाने पर कोई जिंदा भी रहना चाहेगा तो कैसे रहेगा.....? क्या यही है ईश्वर प्राप्ति का मार्ग विशेष - मन रूपी कल-क्लेश की पूजा का विधान विशेष.....? सूर्य की और जल फेंक कर अपने पितरों को तृप्ति कर दिया जाता है । परंतु अपनी ज़रूरतें हेतु जल अनेक प्रयत्नों से भी पूरी तरह से प्राप्त नहीं कर पाते.....! क्या यही विज्ञान है पूजा - अर्चना रूपी कर्मकांण्डों का.....? शर्म भी नहीं लगती ऐसी ऐसी कुरीतियों का प्रचार - प्रसार कर - मनुष्यता को गुमराह विशेष करते हुए.....? सदियों से इन पद्धतियों द्वारा पूरी मनुष्यता को ही डुबो रहे हैं यह महान नीतिकारी भेड की खाल में छुपे भेड़िए दल्ले-दलाल महान विशेष विशेष.....!

            जड़ चांद को देख साबित किया जाता है कि अल्लाह के दर्शन हो गए.....! जशन की तैयारी की जाए.....! वो भी अनंत चेतन जीवो को मौत के घाट उतार कर.....? कैसी महान परंपरा है पूजा-अर्चना की सृष्टि रूपी बाग को उजाड कर प्रभु प्रसन्नता की कल्पना साकार कर ली जाती है.....? कुछ तो और भी महान है जड़ चांद को देखकर उम्र विशेष ही धोखे से बढ़ा ली जाती है.....? कुछ दल्लो विशेषो ने तो हद ही कर दी सूर्य-चंद-शुक्र-शनि-बृहस्पति इत्यादि ग्रहों द्वारा आपके सुख-दुख का भी निर्धारण कर दिया .....! और फिर रुकावटें दूर करने के बहाने केवल आपकी जेब ही नहीं तराशी बल्कि मौका हाथ लगे पुरा का पूरा सिर ही मूंड लिया और फिर मजे की बात है कि आपको पता भी नहीं चलने दिया.....!

            पेड़-पौधे वनस्पति जीवो हेतु लाभकारी-गुणकारी या हानिकारक इत्यादि तो हो सकते हैं परंतु ईश्वर का विकल्प किसी भी परिस्थिति विशेष में कैसे हो सकते हैं.....? जड़ की पूजा चेतन प्रकृति रूपी वनस्पति की वो भी मृत विशेष बना कर - कैसे प्रभु को मना-प्रसन्न कर लिया जाता है.....? यह अनोखी कला तो कुछ महान भेड की खाल में छुपे भेडिये ही खानदानी तौर पर जानते-मानते-प्रचारित कर सकते हैं.....!

            जल जिंदा रहने का आधार तो हो सकता है परंतु मुक्ति का साधन - अब यह कुछ ज्यादा ही नहीं हो गया है.....? कुछ विशेष पंथी तो इसे मन्त्रित कर मंत्र-फूक के अमृत का मूल ही साबित करने लग जाते हैं । जिसे पीते ही आपकी अवस्था रूहानी मंडली विशेषों की हो जाती है.....! जब की गुरु जी लिखकर दे गए हैं कि अमृत हर का नाउ - देही में इसका विश्राम.....? अब दोनों में एक तो अवश्य ही झूठ-छल है - रूह को गुमराह करने हेतु किया जा रहा पाखंड विशेष.....? सुर नर मुन जन अम्रित खोजदे - सु अम्रित गुर ते पाईआ  - छोडह वेष-भेख-चतुराई-दुबिधा - इह फल नाही जिओ.....! तरह-तरह के तरीको-रंगो इत्यादि से शरीर को ढक–सजा कर दावा किया जाता है की विशेष भेष-वूसा इत्यादि प्रभु को खास तथा मुक्ति प्रदान जीव विशेष है.....! यह विशेष भेखी मनुष्य विभिन्न वेष-भूषा का सहारा ले कर मनुष्यो को तो गुमराह कर ही रहे हैं पर स्वंय की तो गर्दन ही कलम करने में निरंतर लिप्त विशेष हैं - स्वंय को चतुर विशेष समझते-साबित करते हुए.....! इन्हें अपने से ही पूछना चाहिए कि क्या आप अपनी ही दुविधा विशेष से मुक्त हो चुके हैं.....? अगर नहीं तो फिर सारे दावों केवल घौर नर्कों  विशेषों का ही आवश्यक दुर्लभ सामान विशेष है.....!

घर ही में अमृत भरपूर है - मनमुखा साद न पाइआ । जिउ कसतूरी मिरग न जाणै - भ्रमदा भरम भुलाइआ ।

मनमुख मुग्ध कुछ बूझे नाही – बाहर भालण जाई.....?

            सभी जानते हैं कि सैंटा जैसी कोई चीज नहीं होती है परंतु फिर भी मनुष्य मनुष्यता को गुमराह करने हेतु हर वर्ष अरबो-खरबो खर्चा विशेष किए जाते हैं इस को फोकट विशेष सच्चा साबित करने हेतु । और ये सब सभी दौड़ दौड़ कर अपने मन से करते हैं - जबकि सभी जानती हैं कि वह सभी एक जरा भी किसी को मुफ्त में नहीं देते.....! यह सच तो पूरी दुनिया में इनका अपना ही फैलाया हुआ विभिन्न प्रकार-व्यवहार इत्यादि रूपी जहर विशेष साबित करता ही है.....! मनुष्य का मनुष्य द्वारा प्रकारों-मान्यताओं-इच्छाओं-कामनाओं रूपी साधनों से मनुष्य को वैचारिक रूप से गुलाम-अनुयायी बना लेना ही इन का स्वार्थ रूपी लोभ विशेष है.....! यही इन महान दैवी प्रचारको का मत-धर्म विशेष है.....! पूरी दुनिया में इनका रंग भेद - खून की होलियां - लूट इत्यादि - इतिहास में दर्ज तरीखे साबित विशेष करती हैं - इनके खूनी इरादों को-मंसूबों को.....! जो आज की तारीख में भी निरंतर जग जाहिर है.....! इन्ही कर्मकाण्डों रूपी चैरिटीयो द्वारा से भी अपने प्रभु-ईश को प्रसन्नचित कर मना ही लेते है .....! हर हफ्ते कॉन्फ्रेंस करो फिर अगले हफ्ते कुछ भी पहले से बढ़कर गुजरने का प्रमाण पत्र विशेष प्राप्त कर लो.....! यहां भी दलालों विशेषों की कमी थोड़ी ना है - सभी एंगल भरपूर विशेष है अलग-अलग नए-नए ढंगों प्रकारों द्वारा लबलब भरपूर मिलेंगे यह लोभी भेड़ की खाल में छुपे भेड़िए विशेष विशेष - बस इन्हें देखने भर की नजर विशेष चाहिए.....!

            आज की तारीख़ में मूर्दे को देर काल तक दफनाना भी अनेक महामारियों को आधारभूतिक साधन विशेष प्रदान करना ही है यह आगे आने वाला समय विशेष अवश्य साबित करेगा.....! मुर्दे को सज़ा-सजों कर रखना और फिर अलग-अलग दिनों विशेषों पर इन से वार्तालाप-मन्नतें मांगना इत्यादि केवल इन मृतकों की रूहों को मोह पास में बांध कर रोकना-भटकाना ही है.....! आज बहु सांखियक बड़ी हुई प्रेत बाधा भी इन्हीं कुरीतियों विशेषों का ही नतीजा भर है.....! इस लिये मृतक को जितना जल्दी हो सके उस के निजी सामान सहित अग्नि के सुपर्द ही कर देना - दोनों समस्याओं को रोकने का सरल सा उपचार मात्र ही है.....! जो जीवित हैं वो रूह भी जन्म से ही इन कुचक्रों में पड़ कर यही रहने-डूबने का मोह बांध लेती हैं और मनुष्य जन्म अनमोल को खो कर या तो प्रेत या निचली जूनों विशेषों में फंस जाती है । बिना स्टीक विधि-मार्गर्दशन के रूह का मनुष्य जन्म केवल फोकट-व्यर्थ ही है । मणी-मसाण-कब्रों रूपी यादगारें तो केवल सरल तरीके से पथभ्रष्ट होना ही है रूह के लिये.....! जो आदि काल से ही कल-कलेश का सुलभ आवश्यक जाल रूपी साधन विशेष रहा है - रूह को गुमराह कर यहीं फंसाये रखना सम्बन्धों विशेषों के जाल में ताकि इस का ये मुल्क विशेष रोशन रहे......! सोचो जरा अगर यहां रूह ना हो तो ये सृष्टि का क्या अर्थ होगा - अगर कुछ होगा भी तो इस का क्या रंग-रूप इत्यादि होगा.....! यानी के कुछ भी मतलब ही नहीं रह जायेगा इस क्रियेशन विशेष का.....! और इसी लिये कल प्रत्येक उपलब्ध मौका - उपाय - साधन इत्यादि  -  किसी भी कीमत-ढंग-प्रकार विशेष को अपनायेगा - रूह विशेष को यहां पर रोकने हेतू ताकी उस का ये मुल्क भरपूर रोशन विशेष रहे.....!           

            एक बार यदि रूह मनुष्य जन्म में आगे नहीं बढ़ पाती तो वह केवल स्वयं की बेवकूफी भरे तरीकों-प्रकारों के प्रकरणों में फंस कर स्वयं को ज्यादा चतुर विशेष समझने के कारण ही डूबती विशेष है - जब आगे नहीं बढ़ती तो फिर नीचे गिरती है और नीचे गिरने की तो कोई सीमा ही नहीं है अनन्ता-अनन्त जूने हैं - पानी में अनन्त हैं तो हवा में महा अनन्त फिर पृथ्वी में तो जाना ही नहीं जा सकता जितना भी आज की तारीख में जाना जाता है वो प्रतिशत में तो है ही नहीं यानी के केवल ना के ही बराबर और शेखी बघारते हैं कि हम बहुत ज्यादा जानते हैं.....! प्रत्येक स्तर-प्रकृति आधार पर जीव की इच्छाओं-कामनाओं को ही ध्यान विशेष में रख कर उसे इन में जन्म विशेष-२ दिया जाता है - और फिर बार-बार जन्म से मृत्यु तक ये निज स्वाद विशेष चखाये जाते हैं। ऐसा युगों-युगों तक होता-चलता रहता है.....! एक स्तर नीचे गिरने का अर्थ है चार पैर वाले जीव - फिर दो पैर वाले - फिर रेंगने वाले फिर कीड़े मकोड़े - फिर हवा के उड़ने वाले - फिर जल वाले फिर बहुत छोटे निशाचर श्रेणी के - फिर ना दिखने वाले सूक्ष्म - फिर अति सूक्ष्म - फिर वनस्पतियों में - फिर पत्थरों पहाड़ों में - फिर स्पेस में फिर बहुत ही ठोस धरती के अंदर धातुओं रूपी आदि महा जड़ में - जहां अनंत काल तक रूह सुप्त अवस्था में तड़पती रहती है - मुक्त होने हेतु पुकारते-चिल्लाते हुऐ.....! सोचो जरा वहां कौन है उसकी इस हालत को देखने - सुनने वाला.....? आज आप समर्थ हैं स्वंय को मुक्त होने - करने का मौका है आपके पास - लेकिन आप के तो किंतु परंतु इत्यादि नखरे विशेष ही खत्म नहीं होते.....! गुरु साहिब लिखकर दे गए हैं कि इस देही को सिमरे देव - सो देही भज हर की सेव - भज गोबिंद भूल मत जाओ - मनुष्य जन्म का ऐही लाहा.....! ऐसा मौका दुर्लभ विशेष बार-बार नहीं आता । महा अन्नत काल विशेष के उपरांत रूह को जागृत कर सभी स्तरी जूनो में जन्म-मरण रूपी भ्रमण विशेष के बाद ही मनुष्य जन्म विशेष में अवतरण होता है - फिर उसमें यदि पिछला कुछ बकाया बड़ा सा रह जाता है तो शरीर में विकार या अधूरापन होता है - यदि शरीर पूरा हो तो कोई हिसाब भरण-पोषण-रहन-सहन इत्यादि में घौर अभाव पैदा कर देता है कि सरवाइव करना ही मुश्किल हो जाता है - अगर यह नहीं होता तो कुछ और नजदीकी संबंधों विशेषों में ही मनमुटाव होता है - नहीं तो कहीं केवल देनदारी ही प्रबल होने के कारण जीवन डूबता चला जाता है - ऐसे साधन-कारण कल-क्लेश देख विचार कर ही जन्म देता है ताकि रुह को यही सदा के लिए बांधा-रखा जा सके.....! रूह विशेष केवल कमाई-खर्च का ही आवश्यक अधिकार विशेष रखती है । एक बार कुछ भी विचार-व्यवहार कर लेने के बाद तो रूह कल के पास रजिस्टर ही कर ली जाती है - अब तो तेरे अपने निज कमाए हुए नतीजो विशेषों के आधार पर ही केवल तुझे जन्म विशेष मिलेगा । तुझे पता ही नहीं चलता कि कब पुराना हिसाब भुगत-भोग रहा है या नया कुछ और भी भयानक नतीजे विशेषो वाला विचार-व्यवहार विशेष- विशेष करता हुआ नए-नए अकाउंट विशेष खोलता जा रहा है कल क्लेश रुपी सृष्टि के इस महा चक्रव्यूह में.....! इसी अनमोल मनुष्य जन्म का अर्थ है वडे भाग मनुष्य तन पावा - सुर दुर्लभ सब ग्रंथ गावा और तू है कि इन दैवी जूनो विशेषों को ही जपने-पूजने में कीमती जन्म विशेष को फिर से - अपनी मूर्खता-चलाकी और शॉर्टकट के चक्कर विशेष में डुबोता चला जा रहा है.....! ना तो तुझे जड़-तत्व-प्रकृति इत्यादि को जपने-पूजने से कुछ लाभ होने वाला है और ना ही भूतकालीन मनुष्य-भूतों आदि देवी जूनो - ताकतों को आराधने वगैरह से कुछ भी प्राप्त होने वाला है.....! सोच जब सृष्टि का आधार रूह के निजी कर्म और नतीजा विशेष है तो फिर कौन सा सुख या दुख कोई भी महान पैगंबर-मसीहा-देव-देवी-भूत इत्यादि स्वंय के संपन्न होने के बाद भी तुझे क्यों कर देना पसंद करेंगे.....? क्या तू कभी भी बिना स्वंय के स्वार्थ के किसी को भी कुछ देता है ? अगर कोई जर्रा विशेष निजी संपदा विशेष का तुझ पर खर्च करेगा भी तो बदले में तेरे से तेरी ही रूह की आत्मा विशेष को ही अपने साथ सदा के लिए बांधकर ले जाएगा - फिर अनंत काल तक इसके हाथ में तो डमरू होगा और तेरे हाथ में तो कुछ नहीं होगा परंतु पैरों पर घुंघरू अवश्य ही बंधे होंगे.....! ऐसा ही होता है यह तो निश्चित तौर पर समझ कर गांठ बांध ले - आगे तेरी मर्जी है कहीं पर भी अपना यह दुर्लभ मनुष्य जन्म रूपी मौका दांव पे लगा दे - निश्चित आवश्यक फल विशेष तुझे मुबारक हो.....!

            हमेशा याद रखियो की एक बार यहां से फिसला तो फिर पता नहीं कहां कितना नीचे तक गिरे-अटकेगा की फिर से ऊपर आने तक में कितना लंबा महाकाल रूपी समय विशेष लगेगा - जो की निरंतर तड़पाने वाला ही होगा यकीनन । इसकी तो विचार गणना ही चक्रा-बेहोश कर देने वाली है.....!

इस पउड़ी ते जो नर चुके – आई जाई बहुत-बहुत दुख पाईदा.....!            स्वंय के वजूद विशेष को विचार कर और खुद को इस कल क्लेश के रूप विशेष मन को मना-अधीन कर.....! केवल और केवल तभी तू स्वंय की मुक्ति के बारे में विचार-व्यवहार विशेष करने में समर्थ हो सकेगा.....! मन तो तुझे नंगा करने में कभी भी वैचारिक तौर पर भी निश्चित रूप से चूकेगा ही नहीं । यह अटल है क्योंकि वह पक्का लॉयल - अपने मालिक-स्वामी का सच्चा भक्त विशेष है.....! इसलिए उसकी रोज क्लास लेनी जरूरी है तथा फैसला अपने हित में करने हेतु - केवल अपने निर्णय का अधिकार विशेष भी केवल अपने पास ही रखना अति आवश्यक है - प्रत्येक काल-स्थिति विशेष में भी.....!

            बंदे खोज दिल हर रोज - ना फिर परेसानी माह फिर नतीजा निकलेगा टुक दम करारी जउ करह - हाजिर हजूर खुदाई .....! यानी मन रूपी किल्ले विशेष पर शब्द (केवल एक रागमई प्रकाशित-सुगंधित आवाज विशेष) रूपी हथौड़े महान विशेष की रोज चोट करते रहो.....!

 T.B.C…...?

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