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             भूत कालीन ईश:-तप ते राज राज ते नर्क बिना सत्य रूपी कमाई के कभी भी सुख की प्राप्ति नहीं होती - फिर सुख में जीव बहुत से तजुर्बे विशेष-विशेष करने लगता है - राज करना भी इसी क्रिया का एक अंश विशेष है....! यानी आप के पास प्रचुर मात्रा में कुछ न कुछ सुख सुविधा के साधन विशेष हैं तो आपको राजा - मसीहा - धर्मात्मा इत्यादि महापुरुष - युग पुरुष का दर्जा विशेष प्राप्त हो जाने लगता है - फिर आप अच्छा भी करते रहें तब भी कुछ फैसले विशेष जो जनहित में होने के बावजूद आवश्यक रूप से अपवाद को जन्म देंगे जो आगे चलकर बहुत बड़ा बलन्डर साबित होगा - बस यंही आप फंस जाओगे क्योंकि कोड अनुसार राजा-नेता-गुरू-पदवी महान पर विराजमान जीव विशेष को प्रत्यक्ष उपज रूपी कर्म-काण्ड विशेष-विशेष का पचास प्रतिशत प्लस या माइनस जो कुछ भी क्यों न हो प्राप्त हो जाता है बेसिक कोड अनुसार और 25% जो इस क्रिया विशेष में सहयोग-सप्लाई वगैरह करते हैं - उनके खाते विशेष में जमा कर दिया जाता है तथा बचा हुआ 25% जिसने यह उपज व्यावहारिक रूप से प्रत्यक्ष विशेष की है उसके खाते में जाता है अच्छा या बुरा बिल्कुल बराबर बराबर का यही निश्चित कोड विशेष है…..! वेदों में इस नियम को ऋषियों ने स्पष्ट तौर पर लिखकर बयान कर दिया है…..! अब आप स्वंय विचार कर सकते हैं कि कैसे राज विशेष भूमिका-प्रधान इत्यादि की प्रत्यक्षता केवल दुर्लभ तप विशेष से ही प्राप्त होती है - चाहे आज देखने में कितना भी आसान (करप्शन) साबित क्यों ना होता फिरे आधार यही है छल-कपट तो एक भ्रम रूपी भयानक धोखा ही है…..! क्योंकि हम प्रत्यक्षता के पीछे का सच नहीं देख पा रहे हैं । पीछे उसने सत कमाया हुआ है वो तो उसे नतीजे रूप में सुख-साधन संपन्न मिलनी ही है - लेकिन मूर्खता में उसने मर्यादाहीनता का निकृष्ट सहारा विशेष ले लिया - अब चलाने वाले काल विशेष ने पिछला दुर्लभ सत विशेष काटकर सुख दे दिया और प्रत्यक्ष किया गया करप्शन खाते में दर्ज कर दिया जो कि आगे या वर्तमान में भी अगर गुंजाइश होगी तो समय अनुसार ब्याज सहित भोगने हेतु आपको अवश्य मजबूर कर ही देगा क्योंकि बिना भोगे-भुगते आप यानी के रूह का छुटकारा वैचारिक तौर पर भी केवल असंभव ही है.....? यह है गाढी कमाई से नर्क गौर तक का सफर रूह महान विशेष-विशेष का.....! जो रूह इस सच्चाई को कमाई से जान लेती है बस वह फिर भूले से भी इस जग में रहना तो दूर ऐसा विचारना भी पसंद नहीं करती । ऐसी जागृत रूह विशेष कमाई वाली ऊपर से ऊपर के रूहानी मंडलों विशेषों में चली जाती है इन्हीं दुर्लभ तपस्वी रूहों को ऋषि कहा जाता है.....!

            अब आप विचार करिए की क्या यह रूहें स्वयं को यही इस मृत लोक में गुरु - प्रधान - मसीहा – नेता इत्यादि केहलवाना या यादगारों के रूप में जानना अथवा पूजा करवाना वैचारिक रूप से भी पसंद करती होगी.....? फिर आप कितना भी चाहे पुकारो - क्या वे यहां के कोड - आधार विशेष में दखल देगी.....? मृत लोक में रुह का फैसला कमाई - खर्च के आधार पर निश्चित होता है - ना कि चढ़ावे - प्रार्थना - सिफारिश - कर्मकांड रूपी पूजा-उपाय-मंत्र-जप-नाच-गाने-पढ़ने-रटने-पत्री इत्यादि इत्यादि महानतम कार्य विशेषों द्वारा तय किया जाता है.....!

            सभी रूहें अपनी कमाई अनुसार अपनी अपनी भिन्न मंडलों - जूनो विशेषों में निश्चित रूप से घूमती रहती हैं - माला के मनको जैसे नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे - कमाई खर्च कर - इच्छा - कामनाओं अनुसार.....! फिर क्या चाह करके भी कैसे और क्यों कर दूसरी जगह पर प्रत्यक्ष विशेष हो सकती है.....? मनुष्य फोकट में ही पुरुषार्थ ना करके इन कर्मकांडों विशेषों में ही अपना अनमोल जन्म आवश्यक दुर्लभ विशेष अनंत काल से निरंतर खोता चला आ रहा है.....! जब तक रुह स्वंय की कमाई से इस सच को जान - समझ कर पूरी तरह से व्यावहारिक तौर पर ठीक दिशा में पुरुषार्थ कर विशेष सत्य को अर्जित नहीं कर लेती - यह सिलसिला विशेष ऐसे ही चलता रहेगा - और रुह के दुखों का कभी भी खात्मा नहीं होगा - वह यूं ही चिल्लाती - हाहाकार करती इन्हीं निचले मंडलों विशेषों में भटकती ही रहेगी.....!

            पूरी दुनिया में विचार - परख कर देख लो चारो तरफ इन्हें बीत गई रूहो विशेषों को ही पूजा - अर्चना इत्यादि करते हुए जाना - विचार जाता है.....! जिनका कभी इस भूमंडल विशेष में अवतरण हुआ था - पर आज वह भूत-कालीन है - फिर भला आपका कल्याण विशेष कैसे संभव हो सकता है.....? अगर आप इस सच विशेष को जानकर कुछ पीछे खिसकना भी चाहो तो यह बीच के जो दलाल विशेष प्रचारक - नीतिज्ञ विशेष महान आपको अनेक अजीब अजीब सी विशेष दलीलें देकर आपको हिलने भी नहीं देंगे.....! सही दिशा में चलने देना तो बहुत दूर की कोढ़ी साबित होगा प्रत्येक काल विशेष परिस्थिति में भी.....! यही रूह की असली लड़ाई है स्वंय को इस भयानक भ्रम जाल विशेष से पूरी तरह से मुक्त विशेष करने की.....! नानक कहत पुकार के गृह प्रभ शरणायी नानक रूप में आई रूह पुकार पुकार कर सभी को मार्गदर्शन करा रही है कि है आत्मा अगर अपना भला चाहती है तो एक परमात्मा की ही शरण विशेष में आओ और सत्य की कमाई विशेष कर स्वयं को इस जन्म - मरण के भयानक चक्रव्यूह से पूरी तरह से आजाद करा लो.....! लेकिन रूहे तो बहुत महान बुद्धि - विचारक है । ये तो कुछ और ही नया और बढ़-चढ़कर ही करेंगी – क्येंकि गुरु जी को प्रसन्न भी तो करना है अतः नानक को ही पकड़ कर बैठी - लटक रही है.....! अब देखना है कि उनकी हाहाकार कब कम - खत्म होगी.....? जैसे रेल की पटरी की दोनों लाइने कभी भी नहीं मिलती जैसा हाल ही रूहों ने अपना निश्चित कर रखा है - क्योंकि यह तो निरंतर इसी अपनी खोटी सोच - विचार रूपी पटरी पर ही दौड़ते हुए अपनी स्पीड निरंतर बढ़ाती जा रही हैं.....! खुद तो डूब चुकी है लेकिन छेनी हथोड़ा लेकर आधी रात में  ही निकल पड़ती है दूसरों को जगाने - उबारने हेतु.....? खुद लफ्जों के अर्थ - भाव से भी अनभिज्ञ है पर दूसरों के घरों में जाकर जगाने पढ़ाने का दावा विशेष महान साबित करते हुए अपना और दूसरों का दुर्लभ आवश्यक मनुष्य जन्म विशेष नष्ट करती फिर रही हैं.....!

            पता नहीं रूह कब समझेगी कि केवल उसे स्वंय को ही इस मार्गदर्शन पर चलना - मानना - अभ्यास विशेष कर अपने चरित्र विशेष को प्रमाणिक तौर पर सत्य साबित करना है - और वह भी अकाल मृत्यु के आने से पहले.....! लेकिन जब तक जीवित है रोज हैप्पी बर्थडे महान को ही जपती - पूजती - चिंतन विशेष करती रहती है.....!

            जितने भी मत - धर्म प्रभावी मौजूद है सभी का आधार कुछ पुरानी लिखित लिपियां ही हैं या सपना आया अथवा कहीं खुदाई में कुछ मिला - और कुछ इन्हीं आधारों को पूर्णतया सच मान जानकर - प्लस - माइनस कर - अजीब अजीब से शब्द जाल महान बुनकर - दुनिया को गुमराह करते आ रहे हैं और हम हैं कि जहां कहीं भी कुछ लाइन - भीड़ देखी नहीं की तेल का पीपा लिए लाइन में लग जाते हैं - पैदल नंगे पैर चलते - घुटनों के बल लौटते पलटते रोलर की तरह रिड़ते हुऐ - अपनी इच्छाओं कामनाओं के अधीन मजबूर हुऐ - कीमती जन्म विशेष को दिन-रात नष्ट करते जा रहे हैं.....?

            गुरु घर की रूहे साक्षी है प्रमाणिक तौर पर इस दुर्लभ सच्चाई हेतु.....! गुरु साहब स्पष्ट वचन कर रहे हैं कि हमारी कोई यादगार - उसारी नहीं करनी - बाणी सत्य का अनुसरण करना - सत्य कमाना - बांटना और जीते जी सत्य को प्राप्त करना है यही मनुष्य जन्म विशेष का अर्थ है.....! जो उसारी करेगा उसका वंश परिवार सब नष्ट हो जाएगा.....! फिर एक राजा कहीं से आया वह कुछ ज्यादा ही अनुयाई था तो उसने उसे वचन को भी स्वीकार कर लिया और उसारी करवा दी.....! नतीजा उसका वंश पूर्णतया सभी परिवार सहित नष्ट हो गया.....! अब आज की तारीख में उस यादगार पर रोज आधी रात से ही मेला लगने लगता है - दूध से धोया - नहाया जाता है – टनों सोना - फुल - चढ़ावा लादा जाता है - और फिर रोज आए दिन कुछ ना कुछ नए-नए अचंबो - दलालों विशेषों द्वारा महाभ्रम प्रचारित - व्यावहारिक विशेष किया जाता है.....! अरबो का चढ़ावा पूरी दुनिया से आता है पता नहीं इतना सब कहां खपत हो जाता है - बिना किसी भी गिनती - लागत के.....? चैरिटी जेब तराशने की भजन फ्री में परोसा जाता है.....! शेष सभी संपदा कीमती विशेष गुप्त ही रहती है.....! अब जिसने वचन को उदूली कर अपना सब परिवार - वंश गंवा - खो दिया उसे सच मानोगे या उसे इस अनियंत्रित भीड विशेष को.....? जो रोज नए-नए आचरण भरे नतीजे घटित कर रही.....? अगला वचन लिखकर दे गए हैं कि जो हमको परमेश्वर उचरे है ते सब नरक कुंड में पड़े हैं.....! जब पहले वंश नष्ट वाला वचन प्रामाणिक रूप से सत्य हो चुका है तो फिर क्या यह दूसरा हमको परमेश्वर उचरे वाला पूरा नहीं होता होगा.....? क्या इसमें आपको कुछ शक - सुभह है.....? यकीन तौर पर जान लो यह भी पहले वचन जैसा ही पूर्णतया सच साबित हो रहा है ब्याज सहित.....! पर यह पता आपको तब चलेगा जब आपकी आंख बंद विशेष होगी.....! तब यकीन मानो आपको बहुत तड़पना विशेष होगा - बचने का तो कोई भी मार्ग शेष होगा ही नहीं - क्योंकि वह सब तो केवल जीते जी ही संभव था.....! फिर आपने तो कुछ अधिक ही कर दिया था मान-सम्मान प्राप्त करने हेतु.....! इन को तो आपने परमेश्वर के पिता की जगह विशेष पर स्थापित कर रखा था.....! पर अब रोने चिल्लाने से भी क्या हो सकता है जब चिड़िया चुग गई खेत.....! खेत शरीर जो बीजिये सो अंत खलोया आयी.....!

              शेष सभी महान महानतम मत - धर्म – नीतिज्ञयो इत्यादि का भी यही हाल विशेष विशेष है - जहां सभी अनुयाई रूहे नरक महाकुण्ड विशेष महान में दौड़ दौड़कर कूदती - डूबती विशेष जा रही हैं पूरी शिद्दत महानता से.....?

            बीत गई रूहो महान को पूजना - जपना - प्रभु रूप में स्थापित करना ही मनुष्य जन्म में अवतरित हुई रूह के लिए महान श्राप विशेष जैसा है । क्योंकि इस श्राप से रूह का अनमोल जन्म नष्ट - खो जाता है और बदले प्रभु के स्थान पर औरों के पीछे भटकने से केवल काले काले घौर तड़पाने वाले कर्म - कांण्ड विशेष ही खाते निज में शामिल कर लिए जाते हैं – रूह स्वंय के द्वारा ब्याज सहित भुगतने - भोगने हेतु.....! केवल यही एक नतीजा विशेष प्रत्येक ऐसी ही रूह विशेष का कमाया हुआ अटल निश्चित सत्य विशेष है प्रत्येक कल परिस्थिति में.....!

             लेकिन इन महा पवित्र स्थान विशेषों गद्धियों - पंथो - नीतिज्ञयों इत्यादि पर कुछ तो रूहानी भी अवश्य ही है.....? वह क्या है जो दिखाई तो नहीं देता लेकिन महसूस आवश्यक होता ही है.....? वह है अनंत काल विशेष से भटकती हुई कामी - इच्छाओं - कामनाओं से पीड़ित भूतकाल की कमाई - ना कमाई वाली रूहो विशेषों का जमघट.....!  जो अपनी इन्हीं वासनाओं में फंसी - डूबी सजायाफ्ता विशेष है.....! और यह तो और कहीं भी जा ही नहीं सकती.....! पर प्रत्यक्ष रूहो की मान्यताओं विश्वासों भ्रमों को आधार बना इन्हीं स्थान विशेषों को मत - धर्म इत्यादि का चोला पहना कर - अपनी कुछ कमाई विशेष को खर्च कर - अन्धी सभ्यता विशेष को पूरी तरह से गुमराह विशेष करने में हर बार पूरी तरह से सफल ही रहती हैं - और फिर मनुष्यों से सिजदा करवा कर स्वंय को प्रभु रूप में अनुभूतित कर घौर प्रसन्नचित होती है.....! इन्ही में से कुछ कट्टर - ज्यादा अनुयायी रूहे तो इन्हीं की तरह प्रेत यानी बीट गई जूनों में ही अवतरित विशेष कर ली जाती हैं - ठीक गुलामी प्रथा के मुताबिक.....! क्योंकि जब आप मनुष्य जून में थे तब यही भूतिया जूने कमाई वाली ही आप के परिवार सहित का देखभाल इच्छा - कामना इत्यादि पूरी करती कराती आ रही थी - आपका अपना ही कुछ पुराना कमाया हुआ सत्य विशेष विशेष महान खर्च करते हुए.....! यही इस सब आडंबर के पीछे का अवश्य आवश्यक सत्य विशेष है.....! आपके मानने ना मानने से कुछ भी फर्क पड़ने वाला नहीं है.....! सच तो केवल आपके आंख बंद करने पर ही सामने आएगा फिर जीते जी कमाई कर स्वंय को पांचो तत्वों से ऊपर उठकर खुद को जान - समझ लो.....! शेष तो केवल लफ्ज़ विशेष ही है - सार तो केवल सत्य की आवश्यक कमाई विशेष में ही प्रत्यक्ष उपलब्ध विशेष है.....!

            दिक्कत तो यह है कि आपको लाइन में लगने के सिवा और कुछ तो अच्छे से पुरुषार्थ रूपी करना आता ही नहीं है.....! इस परिस्थिति में तो बस फिर आपको अपनी बारी का इंतजार विशेष ही करना होगा.....! आपकी यह मन्नत विशेष भी अवश्य ही पूरी होगी.....! याद रखिए इस मुल्क में कुछ भी कभी भी किसी को भी मुफ्त में नहीं मिलता - लाइन में लगकर कुछ भी प्राप्त किए हुए का भुगतान तो बहुत भारी ही पड़ता है -  अतः अकेले तुमसे तो यह भार विशेष ना उठ पाएगा - आपको अपने परिवार संबंधों विशेषों को भी इस भार उठाने की प्रक्रिया विशेष में ना चाहते हुए भी शामिल विशेष करना ही पड़ेगा.....! तब फिर इस मुफ्त की डील की असलियत को जान बहुत तड़पो-पछताओगे.....! पर नतीजा बंधुआ मजदूरी का ही हाथ लगेगा.....! यह भूतकालीन रूहे तुम्हें बहुत बुरी तरह से अजीब अजीब तरीको - प्रकारों द्वारा अनंत काल तक के लिए नाचाती-भटकाती-दौड़ाती फिरेंगी.....! हां तब फिर शायद आपको परमात्मा की याद भूले से आ जाए.....? साथ ही ठीक - गलत की पहचान के तो आप निश्चय ही विशेषज्ञ बन चुके होंगे.....! पर इंतजार करना होगा भुगतान विशेष का.....!

            परमेश्वर उचरे का वचन करने वाले जब अपने धाम विशेष पहुंचते हैं तो फिर उन्हें याद आता है कि मैंने अपने तप स्थान का तो पता किसी को बताया ही नहीं फिर उसे स्थान महान की पूजा - अर्चना - देखभाल इत्यादि का क्या होगा.....? तब वहां किसी देव ने उन्हें अपना तजुर्बा विशेष बताया.....! उस तजुर्बे रूपी विधि को जान गुरु साहब प्रसन्न हो गए और उन्होंने भी उसे विधि का अनुसरण किया.....? वह विधि थी सपने में अवतरित होना.....! यह प्रक्रिया तो मनुष्य जन्म में पुरुषार्थ करने की तुलना में तो बहुत ही सरल और सीधी है.....! उन्होंने भी किसी महाकर्मी को सपने में अपनी तप लोकेशन का नक्शा समझा दिया.....! बस फिर क्या था भक्त जी दौड़ पड़े साधनों के अभाव में भी अनेक मुश्किलों को पार विशेष करते हुए - उन्होंने इस दुर्लभ स्थान विशेष को खोज ही निकाला और फिर धीरे-धीरे से सभी मुश्किलों - रूकावटों को पार विशेष करते हुए एक-एक कर काफिला तो बनता ही गया और फिर से वही उसारी करवा ही दी गई - वैसे ही जैसे उन्होंने शरीर में रहते हुए वचन किए थे वंश परिवार के नष्ट होने को.....?

            आपको एक और मुक्ति का महा तीर्थ मुबारक हो - आपके मन पसंदीदा महा घौर कुंड विशेष की प्राप्ति हेतु.....! कोट तीरथ मजन इसनाना इस कल मह मैल भरीजै । साधसंग जो हरि गुण गावै सो निरमल कर लीजै .....! यहां भी यह सब कर्मकांड आपसे ही करवा लेने वाला भी कल क्लेश काल ही है - क्यों की उसके पास आपकी पूरी जन्म कुंडली विशेष है -  वह केवल आपको ऑप्शंस देता है और आप शॉर्टकट यानी के बिना पुरुषार्थ का आलसी - सरल मार्ग विशेष ही चयन करते हो और एक बार फिर से अपने को नरक कुंड महान में पूरी तरह से डूबोने का सामान विशेष एकत्र कर ही लेते हो.....!

            काल-कल क्लेश कार्य करता है मन विशेष के जरिये । मन काल विशेष का ही प्रत्यक्ष किया हुआ रिकार्डिंग रूपी साफ्टवेयर विशेष है....! यही जब आप सोते हैं तो अपचेतन विकरित धाराओं को प्रवाहित करता आप के अनन्त जन्मों के किये गये कार्यों व्यवहारों के अनुसार जिसे आप ज्यादातर समझ ही नहीं पाते - अतः जागने पर असल स्थिति से अनभिज्ञ आप कुछ ओर ही अन्दाजें लगाते फिरते हैं और कल के इस लुभावने कुटिल जाल विशेष में दौड-२ कर स्वयं को फंसा ही लेते हैं..…! और फिर बाकी जन्म भी इन्हीं कुचक्रों विशेषों में ही धीरे-धीरे नष्ट विशेष होता हुआ पूरी तरह खत्म हो ही जाता है - बचता है तो केवल नतीजा जो भोगने के लिये तड़पना-चिल्लाना तो आवश्यक रूप से पड़ता है.....!

            मनुष्य जीवन भर मन की पसंद नापसंद को ही मुख पर रख फैसले लेता और व्यवहार करता है....!  यही इसकी सब से बड़ी कमजोरी रूपी बदकिस्मती है....!   मन एक सांप की तरह से ही है जो निरन्तर जीव को डंसता ही रहता है - इसे पूरी तरह से बस में किये बिना और जहर से भरे दांतों को निकाले बिना जीव का कल्याण कभी भी काल स्थिती विशेष में भी ना तो कभी हुआ है और न ही आगे कभी होगा...! इस के लिये जीव का निरन्तर सजग रहना - सत्य केवल पर ही आधारित कार्य व्यवहार करना समस्त जिम्मेदारियों को पूरी तरह से निभाते हुऐ केवल एक आधारभूतिक मूल विशेष के प्रति ही आकृषित-मोहित होना जीव के लिये सदा ही मुकत-कल्याणकारी साबित होता है....!  शेष सभी महापुरूषार्थ विशेष-२ भी केवल एक मृगमरीचिका ही है इस अनोखे नष्टवर लुभाने वाले संसार विशेष में.......! ये जग सुफन सामान्यों - जैसे सुपने का सब सुख-दुख कितना भी विशाल गहरा क्यों ना हो केवल जागने भर से ही सब कुछ खत्म सा विशेष हो जाता है - उसी तरह से आखिरी घड़ी में केवल एक पल विशेष में ही रूह एक दम से स्वयं सा महसूस करने लगती हैं पर अभी तो बेइज्जत होना शुरू ही हुआ है देखो आगे-आगे इन महान रूह विशेष का क्या-क्या होने वाला है.....? ब्लातकार लफज़ तो बहुत पहले से ही रिजाईन दे कर संन्यासी हो चुका है फिर किन लफजों विशेषों से इस महान ना खत्म होने वाली आवश्यक क्रिया विशेषों को बयान किया जाये....! खैर भुगतना तो रुह विशेष को ही है और वह अपनी सुविधा अनुसार नये-२ लफजों विशेषों से अपने इस दुर्लभ कमाये हुए अनुभव विशेष होने वाले को अवश्य ही अपने निज खाते विशेष में दर्ज विशेष कर ही लेगी ताकि आगे भी उसे याद रहे....!

कई जनम भए कीट पतंगा - कई जनम गज मीन कुरंगा ।

कई जनम पंखी सरप होइओ - कई जनम हैवर ब्रिख जोइओ ।

मिलु जगदीस मिलन की बरीआ - चिरंकाल इह देह संजरीआ.....!

            यह सृष्टि नाम का माया जाल कुछ ना होते हुए भी इतना बड़ा और विशाल है कि इसके पार पाना इतना आसान भी नहीं है कि इस मुक्ति विशेष के चक्कर में बेवकूफियां करते फिरे वह भी इस मनुष्य जन्म दुर्लभ में.....! जड़ चेतन की इन विशाल प्रक्रियाओं विशेषों में बार-बार मरते-जमते के कारण रूह एकदम बावली सी हो गई है - और फिर मनुष्य जन्म विशेष में आते ही कुछ नाम भर की सुख सुविधाओं के चक्कर में ही बहुत आसानी से मन के झांसे में आकर सदा के लिए फिर से फंसकर डूब सी जाती है - एक बार फिर से यही  महा कुचक्र विशेष को दोहराने हेतु.....! यहां इसका कोई भी सखा-शुभचिंतक है ही नहीं.....! फिर इसे कहीं से भी राहत कैसे प्राप्त हो सकती है.....? और जो कल्याणकारी विशेष आवश्यक है उसकी और तो देखते तक ही नहीं हैं.....! क्योंकि इसे पुरुषार्थ विषय से एलर्जी जो हो गई है.....! वो राहतकारी इस शरीर में - इसके अपने ही वजूद विशेष में - निरंतर विद्यमान – हुंकारे देता हुआ चेताने की कोशिश विशेष कर रहा है.....! धड़कन के जरा सी धीमे होने पर ही इसकी जान विशेष मुंह में ही आ जाती है - पर उसे नाम-शब्द-जान-अमृत इत्यादि के हुंकारे - स्वाद का उसे पता ही नहीं चलता । यह प्राणी तो दौड़-दौड़ कर किन्ही और ही अजीब सी रेसिपियों-स्वादों- भ्रमों इत्यादि में अपना कीमती दुर्लभ प्राण विशेष खर्च करता हुआ - जल्द ही स्वंय को दिवालिया घोषित करते हुए इस जहान से कुच कर जाता है.....! फिर दल्ले जो स्वंय डूबे हुए हैं इसे जगाने - पढ़ाने लग जाते हैं हू-हू करते हुए वह भी सत्य का पाठ.....! राम नाम सत्य है जिंदगी भर जिस नाम से भागता रहा - अगर ढूंढा भी तो दलालो की चमकदार दुकानों पर.....! जो राम नाम का पाठ इसके स्वंय के अंदर में निरंतर हो रहा है उसे ना तो यह सुनना पसंद करता है और ना ही पढ़ना - फिर अमल करने की कौन सी कल्पना.....? सभी दुकानों के बोर्ड अवश्य ही भीड़ भरे आकर्षित करने वाले हैं परंतु अंदर तो केवल कल-क्लेश नाम के धूर्त काले दलाल ही विद्यमान है.....भेड़ की खाल में छुपे भेड़िए विशेष.....! मांन-सम्मान-संपदा की गोलक विशेष सामने से हटा दो फिर ढूंढो राम कथा सुनाने वाला.....? शायद कोई एक-आधा अधूरा आपकी फूटी किस्मत को भा-समा-मिल जाए.....! जीते जी तो सभी जड़-चेतन को छाती से चिपकाते फिरे - अब मंजी पर बेजान पड़े पढ़ने को मजबूर है झूठी देखी प्रीत जगत में झूठी रे.....! अब यह झूठी है या सच्ची तुझे क्या फर्क पड़ सकता है क्योंकि किए हुए का नतीजा तो भरपूर सर पर लदा हुआ ही है - ना यकीन हो तो उठाने वालों में सभी से पूछ कर देख लो.....! सभी की सांस फूली पड़ रही है - सच यह हैं कि सब मिलकर तेरा बोझा ढो नहीं पा रहे तो फिर तू अकेला कैसे अपने इसे निज सफर में - इस दुर्लभ आवश्यक कमाए हुए बोझ विशेष को ढोते हुए भुगतान विशेष दे पाएगा.....!  जो जड़-चेतन-संबंध इत्यादि महान महान कमाया हुआ था वह सब तो यही का यहीं पर छूट गया - पराया हो गया लेकिन ढंग-चालाकियां-कमीनियते-धोखा-छल ईत्यादि वगैरह-वगैरह तो सब तेरी सवारी पर पहले से ही विद्यमान-अड्डा लगाए बैठे हैं - अपना अपना हिसाब रूपी आवश्यक पर्चा विशेष धारण किए - तेरे आने भर का इंतजार विशेष करते हुए - क्योंकि सभी तो पहले मेरा-पहले मेरा का झगड़ा करते हुए अपना हिसाब विशेष तुरंत करवाना ही चाहते है.....! सोच तेरी कैसे कुत्ता घसीटी आगे होने वाली है.....? इन अजीब-अजीब से साहूकारों के अधीन पाई-पाई का कर्ज विशेष चुकाने हेतु.....! ढाई क्विंटल तो तेरा रोजमर्रा का केवल झूठ बोलना ही तुझे बड़े बुरी तरह से तड़पाने वाला है - फिर हर एक के लिए अलग-अलग मुखौटा.....? इसकी तो गिनती तक नहीं की जा सकती - फिर तेरे चरित्र असली को इन मुखौटों के भंडार विशेष में से कैसे फिल्टर किया जाए.....? इसके लिए तो धर्मराज को भी एक अलग ही मशीन विशेष सॉफ्टवेयर वाली प्रभु से स्पेशल ऑर्डर पर मंगवानी ही पड़ेगी.....! ऐसे महान कर्माकारी-भंडारी के तो जितने भी लेख विशेष लिखे जाएं केवल अंत में तो कम ही साबित होंगे.....!

            अच्छा तो यह होता कि जो निरंतर पहले से ही तेरे अपने वजूद विशेष में निहत है उस की ओर जरा ध्यान देता - उसकी भी बात सुनता फिर फैसला करता - पर तूने तो एक पक्ष को ही बिना परखे सत्य-लाभकारी मानकर फूल विशेष चढ़ा दिए.....! इस सिआणत को तो अब भुगतना ही होगा.....! बेहतरी इसी में है कि अभी भी जाग- किछ बिगड़यो नाही.....! जब तक प्राण है तुरंत अपना पासा पलट ले और इस दसवें नंबर के आज्ञा चक्र विशेष पर अपना आखिरी प्राण रूपी दांव लगाकर दावा ठोक दे.....! यकीन जान तुझे फिर कभी भी शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा - कभी भी किसी के आगे भी नहीं.....! तेरी जन्मो जन्मों की सब नतीजे रूपी मैल धूल जाएगी.....! कहीं तीर्थ-तटथन इत्यादि कर्म-काण्डों-पाखंडों की जरूरत ही नहीं पड़ेगी - ना ही कहीं भी डुबकी लगाने की आवश्यकता होगी - ना किसी सामग्री-चढ़ावे इत्यादि की जरूरत है - और ना ही किसी भी फोकट की सुगंध वगैरह-वगैरह विभिन्न मंत्रो रूपी दल्लो-दलालों की आवश्यकता है .....! तू इन सभी अनंत कर्म-काण्डों-पाखंडों-जालो विशेषो से सदा के लिए उबर-मुक्त विशेष हो जाएगा.....!

            सच्चा तीर्थ हर की सेवा तू स्वंय ही हरि का अंश सिवाय हरि के कुछ और भी नहीं है । अतः वो हरि इसी दर-शरीर में पहले से ही प्रत्यक्ष विद्यमान उपलब्ध विशेष हैं.....! इसी को तू पूर्ण समर्पण रियल सच्चा सा कर दे - स्वंय को सदा के लिए सुखी विशेष बनाने हेतु.....! सत्यकर्म कर - सभी की आधार भौतिक जरूरतों में पूर्णतया का योगदान करते हुए - अपने अनमोल जीवन आवश्यक को सार्थक विशेष बनाने हेतु सच्चा पुरुषार्थ कमा । यही तेरे अपने हरि की सेवा विशेष है - फिर केवल अपने ही अंतर विशेष में इस परम चेतन सत्ता विशेष का साक्षात्कार कर - सदा के लिए आनंद विभूत होकर अपने निज घर को वापस पहुंच.....!

नउ दर ठाके धावत रहाए - दसवै निज घर वासा पाए –

ओथै अनहद सबद वजह दिन राती  - गुरमती सबद सुणावणिआ....!

T.B.C…..?

 

                                                                      

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