48.

            किताबी ईश :- अठसठ तीर्थ न्हावे - उतरे नाही मैल अर्थात सभी प्रकार के तीर्थों के भ्रमण-नहाना इत्यादि कर्मकाण्ड कितने भी कर - दोहरा लिये जाये - किये गये अन्नत जन्मों के पुरूषार्थों का नतीजा अच्छा या बुरा अनन्त प्रयासों विशेषों के बाद भी एक रत्ती भर भी नंही बदलता.....? इस कमाये हुए नतीजों विशेषों को ही मैल विशेष कहा गया है.....! आज तो स्थिती ऐसी है कि डिटरजेंट के अभाव में तो शरीर की मैल भी नहीं उतरती तो फिर इन मैले जलाशयों में डुबकियां विशेष-२ लगाने भर से कर्मों के नतीजे विशेष कैसे बदल सकते हैं…..! इस बात को जितना जल्दी समझ लेगें फिजूल खर्ची से तो अवश्य ही बच जायेंगे अर्थात जो रूह को अनमोल मनुष्य जन्म विशेष मिला है उस में कीमती चीज प्राण शक्ति है - इस के अभाव में तो पूरे शरीर-जून का ही कोई अर्थ विशेष नहीं रहता । इस अनमोल रत्न विशेष का फोकट के धन्धों विशेषों में खर्च ना होने से बचत तो होती ही है और इस बचत का खर्च ठीक जगह विशेष पर खर्च किया ही जा सकता है यानी के जिस दुर्लभ कार्य हेतू रूह विशेष को जन्म विशेष मिला है उसे पूरा किया जा सकता है । और वो कार्य विशेष है रुह का अपने मूल तक पहुंचना....!  रुह की इस वक्त की स्थिती विशेष ऐसी है कि वो निरंतर बाहर की ओर ही दौड़ी फिरती है उसे अपने इस निजी कार्य विशेष का तो कोई आभास तक ही नहीं है....! दो बातें निश्चित है जिन्हें जानना रुह के लिये अतिआवश्यक है - पहली कि कुछ भी नतीजा (+ या -) किसी भी काल परिस्थिति में किन्हीं भी उपायों-सिफारिशों-कर्मकाण्डों इत्यादि से रत्ती भर भी बदला ही नहीं जा सकता यानी के अच्छा या बुरा जो केवल आप स्वयं का ही कमाया विशेष हुआ है हर हाल में किसी न किसी जन्म विशेष में पूरी तरह से ब्याज सहित भोगने-भुगतने के लिये आपको मजबूर होना ही पड़ेगा दूसरा संसार या परमार्थ दोनों में A से Z तक कुछ भी कभी भी किसी को भी मुफ्त में नहीं मिलता अर्थात अगर आप कुछ भी चाहते हो तो उस के लिये आप स्वयं को निश्चित पुरूषार्थ विशेष करना ही पड़ेगा   पुरूषार्थ के अभाव में तो रुह को केवल दुख-दर्द इत्यादि महा अभाव ही मिलेगा इसलिये या रोते ईर्ष्या-निन्दा करते फिरो या अपना स्वर्ग खुद बना - कमा लो ....?  तो इसी करने न करने को ही किस्मत या श्राप इत्यादि कहा जाता है अर्थात सब कुछ यथार्थ हार्ड कमाया या गंवाया हुआ जीव विशेष के स्वयं का ही होता है ना कि किसी ताक़त इत्यादि का मुफ़्त में कुछ भी दिया गया या नुकसान रूपी लिया गया होता है जरा-मरा-सिरत-ताप-श्राप सभ हर के वश हैं कोई लाग न साके बिन हर के लाईया - अर्थात सब कुछ एक बेसिक कोड में बंधा - चलाया जा रहा है कमाई-खर्च के आधार पर - हरी अपनी मर्जी से किसी को दुख या सुख प्रत्यक्ष नहीं कर रहा.....! इसलिये पुरूषार्थ पोजिटिव करने के बजाय रूह द्वारा कर्मकाण्ड रूपी उपायों - प्रार्थनाओं इत्यादि को करना - अपने लिये अनुमानित नतीजों की प्राप्ति हेतू - वो तो केवल एक फिजूल खर्ची रूपी स्वयं का ही खुद से दिवाला निकालना भर ही है.....!

            इसलिये इन दो बातों को जितना जल्दी समझ कर व्यवहारिक रूप से रूह अपना लेगी उसकी समस्त परेशानियां-रूकावटें स्वत: ही मिटने लग जायेंगी.....!  माफी जैसी कोई कल्पना ही नहीं है और ना ही कोई शार्ट कट जैसी...! तो क्यों फिर किसी दल्लों विशेषों के चक्र में अपना अनमोल जन्म आवश्यक विशेष नष्ट-खर्च-डुबोते चले  जा  रहे  हो.....!

            लगभग सभी जड़-जल-पत्थर इत्यादि की ही पूजा-अर्चना-प्रार्थना इत्यादि करते हुऐ दर्शन-नहाने-पढ़ने-गाने-रटने में ही डूबते चले जा रहे हैं   बिना कुछ भी विचार-व्यवहार प्रमाणिक किये अलग-२ तरह के दावों विशेषों को ठोक-बजा रहे हैं जब कि वे स्वयं भी अन्तर में जानते हैं कि वे गल्त और गुमराह हैं - लेकिन दूसरों के सामने बहुत कुछ प्रमाणित करते रहने में ही अपना जन्म दुर्लभ गंवा रहे हैं । एक ही प्रश्न है क्या आपने उस ताकत विशेष जड़ को प्रत्यक्ष अनुभव कर लिया है.....? जवाब केवल आप स्वयं ही जानते हैं....! फिर दावे कैसे…..? क्या इन सबसे आप का कभी भी कुछ भी अच्छा-भला हो जाने वाला है.....? एक बात याद रखना सिर पर काल की काली तलवार लटक रही है - पता नहीं कब चल जायेगी और आंख के बन्द होते ही आप को अपनी असली सच्चाई बिल्कुल सामने प्रत्यक्ष अनुभव करा दी जायेगी…..? तब आपको स्वयं पर बहुत आत्म ग्लानि होगी और पछुताना पड़ेगा क्योंकि ये जन्म तो जो स्वयं को मूल में डुबाने हेतू मिला था उसे हम ने गंवा - खो दिया दूसरों के सामने बहुत कुछ साबित विशेष करने में.....? जन्म तो मिला था पढ़ने हेतू लेकिन लगे रहे दूसरों को पढ़ाने - समझाने में और फिर पता ही नहीं चला कब जन्म रूपी दिन बीत गया अब तो फिर से एक बार ओर भयानक काली स्याह रात अंधेरी शुरू हो गयी है...! ना जाने आगे अब और क्या-२ फिर से भोगना-भुगतना  पड़ेगा.....? जो उस को अनुभव कर लेता है एक पल भी उस के पास शेष जन्म कभी भी किसी को भी बताने की फुर्सत ही नहीं होती…..!  पर यहां तो अनेक बड़े-२ हब विशेष बने मिलते हैं - अनन्त प्रकार के महान - महानतम दांवों विशेषों को साबित विशेष-२  करने  वाले…..!

           किताबी ईश वालों का हाल तो इन सभी से कुछ अधिक बढ़ कर बेहाल ही हैं । जान-विचार कर हैरानी होती है कि जो करने को लिखा है उस का तो कोई भान ही नहीं है और जो नहीं करना है स्वयं की रूह को बचाने हेतू उसे दौड़-२ कर अलग-२ प्रकारों-विचारों-व्यवहारों से किया-साबित जा रहा है...? एक फूल-माला को ही ले लो गरूओं - मार्ग दशकों को भी हैरानी ही होगी ये सब जान-देख कर कि ये सब कहां से  कैसे    गया....? चेतन फूल-जीव को मृत बना कर जड़ पर चढ़ा गुरू को प्रसन्न कर मन्नतें पूरी करवा ली जाती हैं । और फूल भी सोने-हीरे पर चढ़े बिखरे हैं.....?  लकड़ी से पत्थर-मकराना इत्यादि फिर चांदी - फिर सोना - फिर हीरा और फिर अब आगे पता नहीं क्या करेगें महान अनुयायी.....? ससपैन्स  जरूरी  है.....!

            लिखत को पढ़ना-विचारना तो दूर रहा उसे हाथ लगाने से डरते हैं.....! बस सजा कर उस के गोल-२चक्कर लगाते हैं और इन के कार्य-मांगे पूरी-सिद्ध विशेष हो जाती हैं....? यहां तक कि ज्यादा चक्कर लगाने पर एकांउट में मुक्ति विशेष तक पूरे वंश की ट्रांसफर हो जाती है । पढ़वाते किसी से हैं और फल अपने नाम-परिवार के एकाउंट में जमा करवा  लेते  हैं…..? केवल गुरु नाम जप लेने भर से रिद्धियां-सिद्धियां एकाउंट को सरोबोर कर देती हैं…..! इतना काफी नहीं है एक जन्म भर के लिये फिर और क्या विचारना बाकी रह जाता है....?  करने कराने विचारने की तो कभी बारी ही नहीं आती....! बस इसी में प्रभू की स्पेशल फौज विशेष तैयार हो जाती है.....! जब बच्चे को स्कूल भेजने की बारी आती है तो टयूशन-कोचिंग का पहले इंतजाम किया जाता है - दिन रात विचारा - क्लास ली जाती है - केवल अगली जमात पर चढ़ाने भर हेतू.....?  यहां किताब सजा कर गोल-२ घुमाया जाता - बल्कि पढ़ाने के साथ प्रेक्टिकल भी कराया जाता है क्योंकि बेहतर पता है कि रिजल्ट अगर अनुकूल ना आया तो पूरा का पूरा साल ही बर्बाद हो जायेगा कीमती जिन्दगी  विशेष  का.....!

            इससे साबित होता है कि मूर्ख तो नहीं है लेकिन परमार्थ में प्रभू के मुंह पर ही मूर्ख लिखा कहीं चुपके से देख लिया गया है ! लोक पतीणे कछू ना होवे ना ही राम इयांणा ज्यादा मेहनत करनी होती हैं तो शस्त्रों की पूजा-र्दशन कर लेता है और संसार में इन्हें पहन कर महायोद्धा साबित करा लेता है स्वयं को.....! लिखत कहती है कि जाको हर लागो इस युग में सो कहियत है सूरा अर्थात प्रत्येक समय काल-सिथती विशेष में भी जो रूह उस हरी के रंग यानी कि समर्थता विशेष को जरा सा भी आभासित कर लेती है केवल वही रूह ही इस भवसागर से स्वयं को मुक्त विशेष करवा पाती है और वही अनन्त काल विशेष में दुर्लभ आत्मा सूरमा विशेष कहलाने - जानने योग्य  बनती  है.....?

            जिन फोकट के कर्मकाण्डों विशेषों से बचने हेतू मार्ग दर्शन हुआ था रूह का - आज रूह विशेष उस से भी अधिक बढ़ कर इन्हीं में ही डूबने का सब बढ़िया-व्यवस्थित बन्दोबस्त विशेष-२ कर रखा है इस महान शाखा विशेष ने.....! कोट तीरथ मजन इसनाना इस कल मह मैल भरीजै पहले लिखत के समय तो 68 तीर्थ मुख थे जिन में रचने - बसने - अनुसरण से मैल कर्मों की नंही घुलती ऐसा मार्गदर्शन किया गया - आज इस से बचने के बजाय इस लिखित की प्रक्रिया में इस्तेमाल किये गये स्थान - साधन - पदार्थ - सम्पदा - वस्त्र - शस्त्र इत्यादि को ही महातीर्थ विशेष बना कर - इन्हें सोने-पत्थर-हीरे जवाहरातों से मड़ दिया गया है......!  पहले 68 थे आज इन के ही अकेले 136 से अधिक महातीर्थ मुक्ति के माइलस्टोन साबित किये जा रहे हैं.....?  इन की यात्रा दर्शन ही जीवन की सफलता रूपी कुंजी प्रचारित की जा रही है   जो लिखित हृदय से दर्ज होनी चाहिये थी उस की तो कल्पना भी नहीं है किसी के पास…..! लिखित अनुसार व्यवहारिक जिन्दगी की बजाय नकली - दिखावटी और फोकट की जिंदगी जीने को ही महान-मॉडर्न बता पंथ को चढ़दी कलां में साबित किया  जा  रहा  है.....! पढ़ने-विचारने और फिर व्यवहार करने के लिये तो किसी के पास समय ही नहीं है…..! फिर भी पूरी दुनिया में प्रभू के नाम पर अलग-२ प्रकार-विकार सभी पंथ-मत-धर्म संतुष्ट हैं कि उन्होंने प्रभू को प्रसन्न कर रखा है अब कुछ भी ओर करना बाकी  नंही  है.....! प्रसन्न करने का ढंग विशेष भी महान नंही है.....? जड़ को अलग-२ मन पसन्द आकार दे कर उस का विशेष नाम करण किया जाता है और फिर उसमें प्राण फूंक कर चेतन बना दिया जाता है । और फिर रोज - विशेष-२ समयों पर दूध-शहद-मक्खन-चन्दन-केसर इत्यादि टनों सामग्री से स्नान करा सोना-हीरा-माणिक इत्यादि से लादा जाता है और फिर सैकड़ों पदार्थों विशेषों से भोग लगाया जाता है - इस से प्रभू बहुत ही प्रसन्न-सन्तुष्ट विशेष  हो  जाते  हैं फिर समय से उन्हें आराम करवाया-सुलाया-फिर जगाया और श्रृंगार विशेष अलग-अलग प्रकार का किया जाता है जिससे प्रभू ओर भी सन्तुष्ट प्रसन्न होकर बड़ी-२ मन्नतें भी बड़ी आसानी से बिना विलन्भ किये पूरी कर  देते  हैं.....? यही सब लिखित ईश वाले भी करते हैं - लिखित प्रतिलिपि को जगाया - सुलाया जाता है श्रृंगार किया जाता है सिर - पालकी पर धर कर घुमाया फिराया जाता है - एक काम नहीं पाते बेचारे नहला नहीं सकते.....! अगर गलती से भी पानी का स्पर्श हुआ तो इन्हें मालूम है कि प्रभू रूष्ठ हो कर सिमट विशेष जायेंगें - अतः इस बात का विशेष ख्याल रखा जाता है । तो फिर सफायी कैसे  करते  हैं.....? तो फिर जान लो एक नयी खोज की गयी है.....?  सूखे वस्त्र को वस्त्र से पोंछा-रगड़ा जाता है जिस से सारी अदृश्य सफायी विशेष हो जाती है - फिर एक वस्त्र में लपेट दिया जाता है जो अण्डर गारमेंट का काम करता है - फिर ऊपर सात-आठ-नौ इत्यादि सोने-हीरे-चांदी से जड़ी भारी भरकम चादरों इत्यादि को ऊपर से लाद दिया जाता है । फिर सोने हीरे लाल से भरी पालकियों तकियों पर लिखित को रैस्ट करवाया जाता है । और समय-समय पर उठा कर बीच-बीच में पढ़ कर हुक्म सुनाया जाता हैं - जिस से किसी को कभी कोई भी सरोकार ही नहीं होता.....? क्योंकि सभी घर पर चलने से पहले ही सभी कार्य इत्यादि फैसले कर के ही निकलते हैं । फिर इन हुक्मनामों के लिये किसी के पास कुछ भी समय होता ही नहीं है - अगर समय निकालेगा भी तो क्यों कर .....? यह सब आधी रात से ही शुरू कर दिया जाता है - बस एक ही काम नहीं किया जाता पढ़ना-विचारना और फिर अपनी स्वयं की जिन्दगी में इस विचार विशेष को अम्ली जामा पहनाना...! अगर पूर्वजों ने गलती से भी कुछ इन दो लाइनों एक अक्षर पर भी विचारा-अमल विशेष किया होता तो सच जानिये कि ये महान पंथी विशेष कहलाने वाला इस जगत में आज कोई होता ही नहीं.....! क्योंकि सभी कब के मुक्त विशेष हो गये होते.....! (क्योंकि करोड़ो का यहां प्रत्यक्ष होना तो यही साबित करता है......!)

            हालत आज ये हैं कि ऐसे-२ खुराट महा अजगर इस महालिखित के आगे कुण्डली मार कर बैठे है - कि इस की छपायी ही नंही करने देते - और ना ही शहीदी रूहें जिन्होंने इस लिखित हेतू ढाई सौ बरस से अधिक समय तक सीधे-२ सामने से प्रत्यक्ष शहादते विशेष दी हैं उन के प्रमाणिक इतिहास को भी ना तो किसी को करने-बनाने-सजोने दिया और ना ही स्वयं किया.....! अगर किया तो बस एक ही कार्य विशेष-महा चढ़ावे पर भरपूर घिसायी की गयी.....! खरबों का चढ़ावा बस लंगर नाम की कब्र में ही दफन कर दिया जाता है....! जो लिखित पूरे संसार में चप्पे-चप्पे पर प्रत्यक्ष उपलब्ध विशेष होनी चाहिये थी - वो महान मार्ग दर्शन एक छोटे से चप्पे में ही पूरी तरह से दफन विशेष हो कर रह गया......! (जिसे दफन करने वाले खुद ही दुतकार रहे हैं तरह-तरह के कर्म काण्ड करते हुए पहले  से  बढ़  चढ़ कर)

            जब कि लिखित स्वयं चीख-२ कर कह रही है कि  परथाइ साखी महा पुरख बोलदे साझी-सगल जहानै क्योंकि यह लिखित ब्राह्मणी कृप्ट सोच से उबरने और रुह का अपने निज घर की ओर प्रस्थान करने के मार्ग विशेष को प्रशस्त करती है प्रमाणिक तौर पर.....! खत्री-ब्राह्मण-शूद्र-वैष्य उपदेस चहु वरना कउ साझा - गुरमुख नाम जपै उधरै सो कल मह.....!

            प्रमाणिक लिखित की ऐसी मंहगी भारी कब्र विशेष को खोदने-नष्ट करने की क्षमता आज भला किस में है.....? तस्वीरें जो केवल पूरी तरह से काल्पनिक - नकली हैं उन्हें भी जेलखाने रूपी आदमखोरी तहखानों इत्यादि में कैद कर रखा गया है.....? ये हैं चढ़ावे का सदुपयोग…..! एक कोशिश किसी ने की थी किसी समय छपायी खाना लगा कर.....? नतीजा जग जाहिर है अनोखा इतिहास बना दिया गया इन अजगरों द्वारा…..! खंडहर पुकारते रहे आखिर उनकी भी सोने की कब्र विशेष बना दी गयी.....! अब बड़ी शान से महा कीर्तन दरबार सजते हैं.....! लिखित पढ़ी-गायी जाती है जो किसी को समझ नहीं आती.....! अर्थात अगर कुछ जर्रा विशेष भासित होता भी है तो वह उसे समझना नहीं चाहता…..! तुरन्त एक छोटे से अंकुरित पौधे की तरह अपने अन्दर से उखाड़ फेंकता है क्योंकि अगर इस अंकुर ने जड़ पकड़ ली तो फिर इच्छाओं - वासनाओं का क्या होगा…..? बड़ी मुश्किल से एक ही जन्म तो मिला है और अभी-अभी तो स्वाद-भोग लगाना -करना शुरू किया है.....! फिर जन्म कभी पता नहीं मिलेगा या नहीं कौन जानता है…..?

तीरथ नावण जाउ तीरथ नाम है - तीरथ सबद बीचार अंतर गिआन है ।

ज्ञान न गल्ली ढूडिये - कथना करडा सार.....!

T.B.C…...?

 

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