47. मजबूरी ईश की :- मजबूरी यानी के-मजे-मनोरंजन से दूर हो जाना ।  जब रुह जिस्म से दूर कर दी जाती हैं तो शरीर के अभाव में वो चाह कर के भी कुछ नहीं कर पाती इस मृत लोक में - क्योंकि कोड अनुसार यहां कुछ भी पाने चाहने हेतू उसे शरीर की आवश्यकता होती है । शरीर भी अगर किसी भी एंगल से अधूरा होगा तो रूह उतनी ही इस जग में अधूरी ही साबित होगी - उस विशेष  कमी  की  वजह  से । जो शरीर में कमी जन्म से ही अधूरी प्राप्त हुये हैं या भुगतान हेतू इस जन्म में आप से वापस ले ली गई है कुछ भी कर ले इसे अपने जीवन भर इस निश्चित अभाव में ही जीने के लिये मजबूर होना पढ़ेगा साधनों इत्यादि से भी उतना ही फर्क पढ़ेगा जितना कि आप के कार्ड में पहले से ही कमाया हुआ मौजूद है । कमाई के अभाव में आप का हर दुर्लभ प्रयास विशेष भी केवल विफ‌ल ही साबित होगा ।

            अब यहां जिक्र हो रहा है ईश की मजबूरी का अर्थात कलोनो ने जड़ में प्राण तो फूंक दिये - चेतन की तरह से भोग-पूजा अर्चना इत्यादि कर्मकाण्ड रूपी चढ़ावा लेना तो शुरू भी कर दिया पर ईश को जो करना चाहिये वह सोच तो सकता है पर साधारण सी क्रिया विशेष की लाख चाहने पर भी कर ही नहीं सकता  जिस का खामयादा (नुकसान) भक्तों को भोगने के लिये मजबूर होना ही पड़ता है - यहां तक कि जो भूल करके भी नहीं करना चाहिये वो वह दौड़-दौड़ कर करता है और जो करना जरूरी है उस का तो वह विचार भी नहीं कर पाता क्योंकि किसी ने उस के कान नीचे दो चपत लगाई ही नहीं.....! फिर ईश का हाल तो ऐसा है कि सामने भोग के थाल तो भरपूर भरे रखें पड़े हैं पर ना तो वो इन्हें सूंघ सकता है और ना ही खा सकता है - आप को देख तो सकता है पर कुछ भी ना तो बोल-बता सकता है कि क्या ठीक है और क्या ठीक नहीं है – बल्कि यहां तक कि कोई इशारा तक भी नहीं दे - कर सकता.....! क्योंकि कोड अनुसार उस के पास शरीर ही नहीं है.....!  आप भी ये बात जानते हो पर चुप रहते हो क्योंकि आप भी लोभ-स्वार्थ से बंधे आंखें बंद और जुबान पर ताला लगा कर के रखते हो.....! क्योंकि यदि आप ने जरा सी भी असावधानी बरती तो सबसे पहले तो चढ़ावा गायब होने लगेगा और फिर आप खूब अच्छी तरह से समझते हो कि इस के अभाव में तो सड़क पर दौड़-दौड़ कर सिर पटकने के बाद भी इच्छाये -वासनाये तो दूर रही आप अपनी भूख-प्यास भी नंही निपटा पाओगे.....! क्योंकि पुरूषार्थ तो कभी करना आपने सीखा ही नहीं बल्कि कहना चाहिये कि विचारा ही नहीं.....! अरे-अरे ये तो आप के बल्ड में ही नंही है पीढ़ी दर पीढ़ी आप यही अपंगता को ही तो फालो करते आ रहे हो.....! और रंगदार चोले और माला आदि टंटा मृत शरीर पर लटकाये गद्दियां महान महानतम लगाये बैठे हो दुनिया को दिशा-ज्ञान बांटने हेतू.....! कल की पहचान है कि जो स्वयं से दिशाहीन यहां अंधा-भूखा-नंगा है वही दुनिया को मार्ग रूपी मत-धर्म प्रशस्त कर रहा है - सभी विशेषों का निवारण-समाधान कर रहा है और चैरिटी का दावा ठोक रहा है.....? जज विशेष-विशेष बनकर महाअंधो को मार्ग तो दिखाया जा सकता है वो भी गौर महा नर्कों का और चैरिटी..…? अरे भड़वे वो तो इन्हीं की जेब को तो तू तराश रहा है.....! तेरा योगदान तो केवल दलाली का ही है और उस में भी तू ऐसा घपला विशेष कर रहा है कि पूरा का पूरा खरबों का चढ़ावा भी तुझे कम ही साबित हो रहा है - क्योंकि तेरी वासनाओं की तो कोई भरपाई हो ही नहीं पा रही.....?

            बेचारे ईश की मजबूरी देखो चुपचाप दल्लों के हाथ से श्रृंगार-बंदोबस्त-पसंद-नापसंद-ठीक-गलत बिना विचारे चुपचाप मूक बन केवल देखते रहने से ही चलने-होते रहने देना - क्या इस ये सारी स्थिति विशेष को एक अपने से मजबूर लफज विशेष में कभी भी फिट किया जा सकेगा.....!       

            संसार में इलाज करना है तो डिग्री चाहिये पर यहां तो रोगी ही हस्पताल खोल कर बैठा मुफ्त में उपाय बांट रहा है....!  मार्ग दर्शन हेतू आंख वाला चाहिये पर यहां तो महा अंधा (नाम-शब्द) से पूरी तरह से अनभिज्ञ महापुरूष-स्री विशेष नाम की दुकान चला रहा हैं.....! मैंने नाम दे दिया - अंधा कह नंही रहा बल्कि नाच-नाच कर ताल ठोक कर बता रहा है कि मुझे तो नाम-अमृत मिल गया है.....! फिर इस मृत लोक में ये मसीहा जलूस भण्डारे-सत्सगं-लीला-कथा-दरबार इत्यादि निकाल सजा कर-कर के क्या कर रहे हैं.....?  शायद अंधों से भरपूर मजे लूट विशेष रहे हैं.....! पता नहीं फिर कब मौका मिले - ना मिले-जिंदगी का भी क्या भरोसा है.....!

            अब ईश की मजबूरी तो देखिये कि कितना भी दुर्गन्ध-धोखा सामने हो रहा हो चुपचाप सहना ही पड़ता है.....! सभी सोना-पत्थर-साधन-सम्पति  वगैरह-वगैरह आता कहां से है.....? ऐसा कुछ भी नहीं है जो पाप-छल-धोखे-खून मनुष्य के से (सना-भरा) सरामोर ना हो.....? जो पहले से ही भूखा-नंगा-दुखी है तो वो क्या चढ़ायेगा सिवाय दुआ के.....! ओर ऐसी अनन्त दुआओं से भी इन विशेष-विशेष महा दल्लों का क्या होगा.....? सिवाय भूखे मरने के.....!  ओर ये करोड़ों लाखों का चढ़ावा-जड़ साधन सम्पत्ती जो चढ़ा रहे हैं वो ऐसे महा योगी महापुरुष परिवार-खानदान-सरकार-मत धर्मों के फाउंडर-अनुयायी है जो सीधे-सीधे सृष्टि के नंगे बलात्कार रूपी खूनी खेल माफिया से भरपूर जुड़े-रचे बसे हैं.....!  कुछ-कुछ आड़े तिरछे हो कर के विभिन्न अचम्भित कर देने वाले ढंगों-विशेषो प्रकारों द्वारा पूरी कायनात का सीधा-सीधा मनोरंजन-मजा रूपी लूट-बलात्कार करने में निरंतर दुर्लभ व्यस्त विशेष हैं.....?  साथ देने - राह दिखाने वाले कुछ ओर महान कल के योद्धा रूपी सिविल सरवेंट भी आगे बढ़कर अपना महाकीमती योगदान दे रहे हैं भरपूर आवश्यक कीमत वसूल करते हुए इस महालूट के चोखे हिस्सेदार बनकर.....?

            अब प्रभू विचारे कर भी क्या सकते हैं.....? सिर पर मांस-खून से भरा तसला सहित पूरे शरीर-बदन पर मांस-खून से सराभोर श्रृंगार-सजावट इत्यादि भी घौर ना चाहते हुऐ भी होने के लिये मजबूर होना ही पड़ता है इस कल-जुग में.....?

            सब थक कर सो जाते हैं पर प्रभू की पलक तो झपक ही नहीं सकती - बल्कि उनसे तो खून-मांस की गन्दी बदबूदार धारायें निरंतर बहती ही रहती हैं......!  कुछ समय बीतता ही है कि फिर से नये दलाल हाजिर हो जाते हैं - सब साफ़ सफाई कर फिर से नये रंग-बिरंगे श्रृंगारों-सजावटों का महा दुर्गंध से भरपूर महा कर्म काण्डों रूपी पाखण्ड जबरदस्ती सिर पर लाद दिया जाता है - चुपचाप ढोने हेतू अगले कुछ समय काल हेतू.....!

            एक मिसाल मिलती है गुरु घर में जब नानक को मलिक भागों के शाही भोज में आमंत्रण दिया गया - ना शामिल होने पर जवाब तलब किया गया तो गुरु साहिब ने एक ओर श्रमिक के घर से भोजन मंगा कर दोनों भोजन को दोनों हाथों में पकड़ कर निचोड़ दिया नतीजा सामने था एक तरफ तो दुर्गंध से भरी खून की धार बह रही थी तो दूसरे तरफ सुगन्धित दूध की…..! अब आप स्वयं से फैसला कर लें अपना भी कि आप किस पक्ष में अपना जीवन यापन कर रहे हो ।

            कल में तो केवल खून-मांस का ही व्यापार रूपी प्रसाद चढ़ाया-भोगा-बांटा जाता है....!  कुछ विशेष मतों धर्मों - दिनों - मौकों पर करोड़ों जीवों की बलि-हत्या कर ईश को प्रसन्न भी कर - मना ही लिया जाता है.....?  अगर ऐसा ना हो तो फिर अगले महीने - दिन या साल कैसे प्रभू महान विशेष- विशेष मुद्रा विशेष में फिर से एक बार उपस्थित – पहले से भी ज्यादा तैयार पर तैयार इंतजार विशेष करते हुए मिलते हैं.....? केवल दुर्गंध मिटाने हेतू रोज प्रभू करोड़ों-अरबों के टनों मालाऐं-फूल कैसे स्वीकार कर लेते हैं जब कि दूसरी ओर सभी जीवों सहित मनुष्य दाने-दाने को मोहताज तड़प-तड़प कर जीने को मजबूर विशेष है वो भी दल्लों विशेषों के बनाये हुए कानूनों-र्मयादाओं में.....? और ये फूल भी लादे जाते हैं सोने-हीरे-जवाहरातों के ऊपर.....!  अब तों कल ने भी हद पार कर दी है....! यही है आस्था-विश्वास की दुर्लभ आवश्यक कसौटी विशेष.....? आप की आस्था कहीं हर्ट ना हो जाये उस का तो पूरा ख्याल रखना ही पड़ता है हे महानतम.....!

अंधे गुंगे अंध अंधार । पाथर ले पूजह मुगध गवार । ओहि जा आप डूबे तुम कहा तरणहार.....!

            बिना विज्ञान की सोच के समस्थ आस्था केवल महा नर्कों का भण्डार विशेष ही है - तो आस्था रहित विज्ञान आप का समूल जड़ से विनाश निश्चित बना देता है प्रत्येक युगकाल - स्थिती में भी निश्चित रूप से.....?

पाठ पड़िओ अर बेद बीचारिओ निवल भुअंगम साधे । पंच जना सिउ संग न छुटकिओ अधिक अह्मबुध बाधे । पिआरे इन बिध मिलण न जाई मै कीए करम अनेका । हार परिओ सुआमी कै दुआरै दीजै बुधि बिबेका । मोन भइओ करपाती रहिओ नगन फिरिओ बन माही । तट तीरथ सभ धरती भ्रमिओ दुबिधा छुटकै नाही । मन कामना तीरथ जाइ बसिओ सिर करवत धराए । मन की मैल न उतरै इह बिध जे लख जतन कराए । कनिक कामिनी हैवर गैवर बहु बिध दान दातारा । अंन बसत्र भूम बहु अरपे नह मिलीऐ हरि दुआरा । पूजा अरचा बंदन डंडउत खट करमा रत रहता । हउ हउ करत बंधन मह परिआ नह मिलीऐ इह जुगता । जोग सिध आसण चउरासीह ए भी कर कर रहिआ । वडी आरजा फिर फिर जनमै हरि सिउ संग न गहिआ । राज लीला राजन की रचना करिआ हुकम अफारा । सेज सोहनी चंदन चोआ नरक घोर का दुआरा । हरि कीरत साधसंगत है सिर करमन कै करमा । कह नानक तिस भइओ परापत जिस पुरब लिखे का लहना । तेरो सेवक इह रंग माता । भइओ क्रिपाल दीन दुख भंजन हरि हरि कीरतन इहु मन राता ।

T.B.C…...?

 

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