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27. एक
प्रश्न - ?
Ø तेरे सभी विभिन्न प्रकारो महानो – जिन की तू अर्चना – पूजा – अराधना – ध्यान व्गैराह करता आ रहा हैं – गा - नाच – कूद कर ...! क्या इन सभी विभिन्नताओ में से कोई एक भी ऐसा ऊच्छिष्ट – “पर्मात्मा के पितामहो” में से हैं जो स्वंय से प्रतिपादित हैं ...? Ø तो जान ले
केवल नंही ...!
कोई एक भी
वैसा नंही हैं
जो स्वंय को
परिभाषित भी
कर सके – यही सच
हैं ! Ø परन्तु
केवल एक ही
ऐसा हैं जो
स्वंय से ही
सदाबहार रौशन
– निरन्तर
प्रत्यक्ष
सदाबहार
विशेष हैं “ परम चेतन
सत्ता ” ...! Ø हे नानक
तेरा गुरू
(परमात्मा)
कौन हैं - ? नानक
उवाच – शब्द
गुरू ( केवल
रागमई
प्रकाशित
आवाज़ ) अर्थात
“ परम
चेतन सत्ता ” – सुर्त
धुन चेला ...! Ø तेरे सभी
महान धार्मिक
– संसारिक
कर्मकाण्डो से
तो केवल यही
साबित होता
हैं कि “ महामूर्ख ” लिखा हैं
प्रभु के
मस्तक – ललाट
विशेष पर – ओर
यह भी केवल
तुझे ही
दिखायी दिया
हैं क्योंकि
देखने की
दुर्लभ दिव्य
दृष्टि तो
सिर्फ तुझे ही
प्राप्त हुई
हैं ना ...! Ø ईलाज केवल
एक ही हैं
प्रत्येक काल
विशेष में भी –
पिछला पूरा
ईमानदारी से
विद ईन्टृस्ट
सच्चे मन से
भुग्तान तथा
आगे सदा के
लिये “
तौबा विशेष ” कर
अन्दरूनी
सच्ची आत्मा
विशेष से – “ तभी तुझे “
कुछ ” कहने का
मात्र अधिकार
– “ऊच्छिष्ट ”
विशेष हैं ...! ” Ø चालाक –
सियाणतो से ओत
– प्रोत विकृत
इच्छाओ – वासनाओ
में डूबा “ प्राणी
केवल भूत – काल –
प्रेतो ” का ही
अनुसरण करता
हुआ महा काल
के जाल विशेष
में सदा के
लिये गर्क
विशेष होता जा
रहा हैं ...! Ø निजी जन्म
मरण – निजी
शादी ब्याह –
निजी मत धर्म –
निजी पसंद
नापसंद को
विचार कर लिया
गया कोई भी
निर्णय केवल “
व्यक्तिगत-सीमाबध-स्वतंत्र
”
विशेष हैं । Ø केवल
जनहित अथवा आत्मिक
उन्नति को
प्रत्यक्ष
ध्यान में रख
कर लिया गया
प्रत्येक
फैसला ही
स्र्वोत्तम-आधारात्मिक
तौर पर सर्व
कल्याणकारी
विशेष हैं । |