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28.एक औंकार
सतिगुरू
प्रसादि तेरे
भाणै सरबत दा
भला Ø “ अन्न ” केवल भूखे
अथवा
जरूरतमंद के
लिये ही
उपलब्ध विशेष हैं
– शेष समझ-बूझ
कर ही ग्रहण
करें ...! Ø कंही भी –
किसी भी
महानतम स्थान
विशेष पर भी
सभी प्रकार का
चढ़ाया हुआ
चढ़ावा – महा
कालकूट रूपी
ज़हर से भी
बढ़कर भयावह
जहरीला विशेष
ही होता हैं
(प्रत्येक काल
विशेष में भी ) –
अतः सभी चालाकी
भरे
धार्मिक-संसारिक
महा कर्म
काण्डो से भी –
इस के अपने ही
कमाये हुऐ
निज़ी नतीजो
के एक सूक्ष्म
से कण विशेष
को भी बदलना
तो दूर रहा
केवल हिलाना
तक भी घौर महा
असम्भ विशेष ही
हैं वैधानिक
तौर पर ...!
(प्रार्थनायें
– नज़रे मारना –
अरदासे वगैरह
केवल महाकाल
काल का भ्रम
रूपी माया जाल
विशेष हैं ।) Ø सभी प्रकार
के
चढ़ावो-प्रभावो
पर किसी
प्रकार की
जुगाली विशेष
करने वालो को
खूब अच्छी तरह
से विचार
विशेष कर लेना
चाहिए
क्योंकि
नतीज़ा तो
पहले से ही
निश्चित हैं –
क्योंकि
अवश्य ही किसी
की हर ज़र्रे
पर नज़र रूपी
पकड़ विशेष
हैं अर्थात
केवल जुगाली
भरने से पहले
तक ही छूट विशेष
हैं – भरने के
बाद तो केवल
चीख-पुकार
रूपी भुगतना
ही शेष मात्र
हैं ...?( कूक
पुकार को न
सुणे अत्थे
पकढ़ ओह
ढ़ोहया ...!) Ø “ यश अथवा
मान ” रूपी
वासनात्मक
कीड़ा तेरे
स्वंय के अति
मेहनत से
कमाये हुऐ “
दुर्लभ
सतोगुण
विशेष ” को भी पूरी
तरह से
खा-चट-हज्म कर
जाने में घौर
समर्थ विशेष
हैं – ( जैसे
दीमक लकड़ी को
चट कर जाती
हैं ) । Ø “ आवाम ” प्रत्येक
काल में अन्धा
ही होता हैं –
अतः इसे लूटना
अथवा इस की
चमड़ी उतारना
तो और भी बहुत
ही आसान होता
हैं – परन्तु
लूटने वालो “ खूनी
– लोभी
भेड़ीयो ” की भी अपनी
ही कमायी हुई
एक नतीज़े
रूपी भुगतान
की “ एक भयावह –
तड़पने वाली
घड़ी विशेष ” भी साथ के
साथ ही
निश्चित
विशेष होती
जाती हैं – जो
किसी भी
प्रकार के
ब्लातकारी को
ईन्टरेस्ट के
सहीत
तड़प-तड़प कर
हज़्म विशेष
करने के लिये
मजबूर कर ही
देती हैं
(ब्याज़ के
रूप में उसे
अपनी ही चमड़ी
के साथ-साथ
हड्डियां भी
खुरचवाने के
लिये मज़बूर विशेष
होना ही पड़ता
हैं – अपने ही
जानकारों –
सप्लायरो –
साथियों –
अनुयायिओं –
सेवादारो –
सम्बन्धियों
के साथ
अपने-अपने
अधिकारो के अनुसार
अर्थात किस ने
कितना भोगा
अथवा भोग लगाया
या के जुगाली
विशेष-विशेष
भरी .....मात्रा
या समय
इत्यादी के
अनुरूप से
वैधानिक तौर
पर ...?)। Ø केवल एक “
अकाल – काल ” रूपी “
परम चेतन
सत्ता ” विशेष के
नाम रूपी “
प्रसाद ” की मात्रा “
पचास ग्राम ” के समीपतम
तक ही ग्रहण
योग्य हैं -
कोई भी इस का त्रिस्कार
नंही कर सकता
क्योंकि इस
में उस का अपना
कमाया हुआ
निज़ी ज़हर
विशेष भी
समाया हुआ हैं
...? – A से
Z सब
कुछ केवल वही
एक ही तो
हैं , अतः सोच -
विचार कर ही
अगला कदम
बड़ायें...! Ø केवल मेहनत
तथा ईमानदारी
की कृत से ही
सामाज़ का
भरण-पोषण,
मलहम-पट्टी
अथवा बदलाव या
सुख – सम्पदा
का प्रत्यक्ष
उपलब्ध
सम्पन्न
विशेष होना
सम्भव हैं –
शेष तो केवल
भ्रम रूपी
मरीचिका
मात्र ही हैं विशेष
रूप से अर्थात
आप केवल अपने
स्वयं को ही ठग
रहे हो बड़ी
चालाकी से
चतुराई
द्वारा ...! “
कूड़ बोल
मुरदार खाई –
अवरे नू
समझावण जाई ।
मुट्ठा आप –
मुहाये साथे –
नानक ऐसा आगू
जापै ...! ”
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