24. मन बेचै सतगुर के पासतिस सेवक के कारज़ रास

 

( सत + गुर ) = केवल रागमई प्रकाशित आवाज़ विशेष जो तुझे केवल अपने निज के दुर्लभ आवश्यक शरीर विशेष में ही प्रत्यक्ष अनुभव विशेष होगीप्रत्येक कालस्थिती विशेष में भी ...­­! बाहर और कंही भीकिन्ही भी यत्नों-उपायों से भीप्रत्येक काल विशेष में भीकेवल और केवल नहीं विशेष ’’ ...­!

सत ’’ केवल वंही लगाया जाता हैं, जो तीनों कालों में प्रत्यक्ष अनुभव विशेष होता हैं तथा गुरू का रूहानी भाव केवल मार्गदर्शक नंही बल्कि आधारभूतिक आवश्यक सत्ता विशेष हैंजो हर पल परम चेतन निरन्तर धड़कती विशेष हैं ...! यह परम चेतन सत्ता ’’ विशेष स्वंय तो मूक ही बनी रहती हैं लेकिन विधि विशेष ’’ के रूप में प्रत्येक जर्रे विशेष में समायी हुई उस पर निरन्तर नज़र विशेष रखती हुई धौर नियन्त्रित विशेष करती हैंआधारभूतिक नियम बन्धन के आधीनप्रत्येक काल में निरन्तर वैधानिक तौर पर ...!

     समाज का निर्माण अथवा पोषण तभी प्रत्येक आत्मा के लिये लाभकारी सिद्ध होगा जब पवित्र कमाई ’’ से इस में आधारभूतिक योगदान विशेष हो झूठ-छल-रेप इत्यादी से उपजित साधनों विशेषो से किया गया सभी प्रकार का चैरिटी रूपी प्रयास सत ’’ का अनुभव विशेष तो एक तरफ रहा आत्मा को संसार से भी बेदखल करने का ही केवल साधन विशेष साबित होगाफिर नर्क के धौर यात्ना भरे अन्धकारो से उस का कब छुटकारा होगा, इस भयानक सृष्टि चक्र विशाल को तो कोई भी ब्यान करने में भी असमर्थ ही साबित होगा

     सभी किसी किसी प्रकार कंही कंही पूरे सृष्टि चक्र का किन्ही ढ़ंगों विशेषो से केवल जायज़-नाजायज़ ब्लातकार विशेष करनें में ही धौर व्यस्त विशेष हैंनिरन्तर धौर उत्साहित विशेष-विशेष होते हुऐ ...! अत ! इन के द्वारा उपलब्ध साधनों विशेषो से चैरिटी केवल आत्मा का धौर पतन विशेष ही साबित होगा दीर्घकाल विशेष में वैधानिक तौर पर इसे स्पष्ट पहचान लों ...! इस चढ़ावे को स्वीकार करने वाला घर बैठे ही अपने आप रेपिस्ट हो जायेगा वैधानिक तौर परफिर अपनी रसोई अलग करने से वो कैसे बच सकेगा ...? बाहर दलदल विशेष बना रहा हैं आत्मा के डूबने हेतू और अन्दर निजी तलाब विशेष में अमृत स्नान कर रहा हैं, अर्थात विधि के माथे पर पूसिया लिखा हुआ हैंजो केवल इस महान दलाल को ही दिखाई दिया हैं ...! और बिना चढ़ावा स्वीकार किये इन का महान पन्थ-धर्म-ड़ेरा-सचखण्ड़ रूपी पैरिस वगैरह-वगैरह चलना तो दूर रहा कागज़ पर भी नहीं लिखा जा सकता ...! जिन महानताओं का प्रचार विशेष किया जाता हैंउन्होंने तो जीते जी मत्था नंही टिकवायाकुछ भी स्वीकार नंही कियालेकिन उन के आँख बन्द करते ही उन की ठीक अगली पीढ़ी केवल मत्थे ही नंही टिकवाती बल्कि टोकरा-गोलक ले कर बैठती हैं, सब कुछ स्वीकार करती हैं और अपने रूप दर्शनों में केवल मुक्ति ही नंही बांटती बल्कि अपनी महान दृष्टि विशेष से आप के सभी रेपों विशेष-विशेष महानो को भी विलुप्त रूपी हवा विशेष करने का विशेष-विशेष दावा प्रस्तुत करती हैं ...! तो क्या सच में विधि का विधान काला ’’ हो गया हैं वैधानिक तौर पर ...? स्वंय विचारियेगा अवश्य ...! जानकारी के लिये इतना अवश्य जान ली जियेगा कि जो सुख-साधन रेप के बदले उपलब्ध विशेष हो रहें हैं वो केवल पिछले आप के ही कमाये हुऐ दुर्लभ आवश्यक सत्यो विशेषो को ही जलाने से प्रत्यक्ष हो रहे हैं कि आप के प्रत्यक्ष रेपों के ऐवज़ में ...! इन का नतिजा तो केवल आप के निजी खातों में जमा विशेष हो रहा हैं, जिन्हे आगे आपको विद विद इटरेस्ट भुगतने के लिये मजबूर होना ही पड़ेगा अनन्त कल्पो विशेषो के बाद भी वैधानिक तौर परसभी महान-महान सम्बन्धों-जानकारों-सेवादारों-अनुयायीयों विशेषो को भी अपने-अपने योगदानो के अनुसार ...! फिर भी अगर आपको इन महान-महान दलालों पर भरोसा हैं तो लगे रहो आप इस मृग-मारीचिका ’’ रूपी धन्धों विशेषो में और इन्तज़ार करो प्रत्यक्ष के आँख मूंदनें कासभी सच एक पल में प्रत्यक्ष हो जायेगा ...! अरे ये क्या ! आप के बाल तो किसी और के विकराल हाथों में हैं और वो बड़े ही गन्दे ढ़ंग से घसीट कर ले जा रहा हैं ...! कर्म-काण्ड़-धर्म-पाखण्ड़ जो बीजे-तिन जम-जगाती लूटै ...!

     हक पराई नानका ऊस सुअर ऊस गाय गुर-पीर हामा ता भरे जे मुरदार ’’ खाई मारण पा हराम ’’ मह होई हलाल ’’ जाई गलि भिष्त जाइये-छूटै सच कमाई ’’ अर्थात पराये अधिकार में आप का जबरदस्ती दखल विशेष सभी मत-धर्म के अनुयाइयों के लिये घौर धर्म अथवा विधि विधान के विरुद्ध हैं यानी के आत्मा के लिये हराम अर्थात नर्क विशेष-विशेष ही हैं विशेष-महान-महान मार्ग दर्शक भी तभी उन्ही आत्माओं को केवल स्वीकार विशेष करते हैं जो घौर मर्यादित विशेष रहती हैं प्रत्येक काल-स्थिती विशेष में भीपराये मुर्दे नंही खाती अर्थात मरना पसन्द करती हैं अमर्यादित होना नंही, यानी के विधि के विधान में ही केवल अनुकूल विचरती हैं कि विपरीत ...! और फिर पराये मुर्दे हज़म विशेष कर कुछ हिस्सा दान-दक्षिणा-चैरिटी कर देने के बाद जो आप के पास शेष बचता हैं वो भी केवल हराम ’’ ही होता हैं कि चैरिटी के बाद बचा हुआ हलाल विशेष ’’ हो जाता हैं ...! इन हराम के व्यवहारों से सुख-स्वर्ग की गली अर्थात दसवें मुक्ति के द्वार का अनुभव कभी भी नंही होता ...! इस मार्ग के लिये तो केवल सच ’’ के व्यवहार रूपी सोच की कमाई विशेष ही आत्मा को सत्य का आवश्यक व्यवहारिक आत्मिक बोध विशेष करवाती हैं ...! और फिर झूठ के व्यवहार रूपी गली में विचरण करने वाली आत्मा को तो अन्त में केवल नर्क की ही अन्धी तड़पाने वाली गलियों विशेषो में ही तड़पने के लिये मज़बूर विशेष होना ही पड़ता हैं

 

कूड़ बोल मुड़दार खाईअवरे नू समझावण जाई

मुठा आपमुहाऐ साथेनानक ऐसा आगू जापै ।। ’’

 

आज सारे जगत की स्थिती बिलकुल ऐसी ही बनी हुई हैं अर्थात जो निरन्तर मुर्दे विशेष-विशेष खाता हुआ केवल जहर विशेष ही इकठ्ठा करने में घौर व्यस्त विशेष हैं वही संसार में ज्ञानी-गुरमुख-गुरू-पीर-नेता-अधिकारी विशेष वगैरह-वगैरह बना हुआ गद्धी-तखता विशेष बना कर दूसरों को मार्ग दर्शाता हुआ समझाने विशेष में लगा हुआ हैं ...! लेकिन सच तो ये हैं कि वह स्वंय तो ठगा अर्थात डूबा हुआ ही हैं और जो उस के साथ लगे अथवा अनुयायी बने हुऐ हैं वो भी धीरे-धीरे बड़े प्यार-श्रद्धा से डूबते ही जा रहे हैं, केवल अपने ही प्रयत्नों विशेषो से निरन्तर चलते हुऐ ...! और ऐसे महानो को जगत में आगू अर्थात गुरू-प्रधान के रूप में प्रचारित किया जाता हैं ...!

     पूरा मीडिया आज चकला अर्थात रण्ड़ी विशेष बना हुआ इसी का प्रचार-प्रसार करनें में ही घौर व्यस्त विशेष हैं ...! और महान-महान दल्ले इस रण्ड़ी को नचाने में निरन्तर प्रयत्नशील विशेष हैं अधिकारी को वोट दोपर अधिकारी विशेष की परिभाषा किसी के पास नंही हैं अर्थात सभी अपराध विशेष-विशेष सहित अधिकारी हैं ...! अपने इलाके के प्रतिनिधियों की पत्री कोई भी चैनल प्रचारित नंही करता करोड़ों की घूस खा कर उन्हे ही अधिकारी निश्चित खानदानी बताता हुआ आगू जापै ’’ साबित कर रहा हैं ... ! पूरे सिस्टम में ऐसा कौन हैं जो इस परिभाषा पर पूरा नंही उतरता, इस की खोज व्यर्थ का प्रलाप मात्र ही हैं पार्टी ’’ नाम के राक्षस को तोड़ना होगा तथा प्रत्यक्ष सक्षम समर्थ ज्ञानवान को ही नुमाईदा बना कर पूरे सिस्टम को तोड़ कर छोटे-छोटे खण्ड़ों में विभाजित कर प्रजा के सीमित छोटे-छोटे दायरों में उस के आधीन प्रत्यक्ष प्रस्तुत कर ही मनुष्य की गती और सुरक्षा सम्भव विशेष हैं प्रत्यक्ष स्थिती विशेषो में ...!

     मनुष्यता की सुरक्षा भोतिकवादिता में नंही बल्कि प्रकृति की वैधानिक अनुकूलता में हैं अर्थात सभी प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा तथा पोषण के केवल आधारभूतिक संसाधनों का ही पूरी तरह से पोज़िटिव संचालन-अर्जन-निरन्तर ही आत्मा को आवश्यक लाभ रूपी पोषण देने में स्मर्थ विशेष हैं ... !

Back to Index | Next