31.नतिजा

Ø क्या डाडा - कैसा साहिब ...! मत -धर्म रूपी सभी प्रकार के कर्म पाखण्ड जो दीसें - ये सब ईस जगत को निरन्तर नये-नये प्रकारो व्यवहारो से भ्रमायें विशेष हैं ...!

Ø सच जान सुनो रे लोगो अम्ला-बाजू सभी रूंहे इस सृष्ट विशेष में निरन्तर सदा केवल विलाप विशेष ही करें हैं ...!

Ø जिसे तू जल-आकाश-मृत्को-कब्रों-कीच तालाब-तीर्थ-पत्थर मूर्त-किताब-ध्यान-दूसरे ईत्यादि शरीरों विशेषो में तालाश रहा हैं – विभिन्न प्रकार के मंत्रों-जपो-शलोकों-पदार्थों ईत्यादि विशेष विधियो कर्म काण्डों से – मर्ख प्राणी वो तो केवल तेरे स्वंय के ही रोम-रोम में निरन्तर सदा भरपूर स्माये विशेष हैं !

Ø मनुष्य जन्म विशेष का कीमती-अनमोल हर स्वास विशेष तुझे केवल अपने मूल आधार  विशेष को ही पूरे सच्चे मन विशेष से भेंट चढ़ाना था – इसे भूल कर तू और ही पाखण्ड़ों-वेषो-व्यवहारो से वनसपती-फूलों का कत्ल विशेष कर मृत्कों-कब्रों पर चादरों को चढ़ा कर – कर रहा हैं – केवल व्यर्थ सासों को निरन्तर बहा विशेष कर .....! इन सभी महान्तम काण्ड़ों विशेषो का विकराल नतिज़ा विशेष लिये महाकाल तेरे सिर पर निरन्तर धूनी विशेष रमाये बैठा हैं – गिन्ती विशेष करता हुआ आखरी स्वांस के इन्तज़ार विशेष में – ताकि तुझे विशेष अनुभव करवा चखा सके तेरे इन कुर्बान किये हुऐ व्यवहारो विशेषो के एवज़ में .....! (अन्नत काल तक की एक भयानक चीख रूपी तड़प से कम भला और क्या उम्मीद की जा सकती हैं इस भेख रूपी भ्रम से भरी चालाकियों से भरपूर-कुर्बान किये हुऐ स्वासों से कमाये हुऐ व्यवहारो के निश्चित नतिजों के रूप में .....­? )

तेरे इस स्वरूप विशेष को सदा नम्सकार हैं - हे महाकाल रूपी अकाल विशेष .....?

Ø झूठा  जो भालण मैं निकलया झूठा न मिलयो कोये । जब मन भालया आपणा मुझ से सुन्दर – रंगिला - अच्छा और बड़ा न कोय !

       समस्त संसार मुर्दा परस्ती में ड़ूबा पड़ा हैं ! सभी मत – धर्म केवल मुर्दो को ही पूज – जप – गा – बजा – नाच विशेष रहें हैं । अधिकतर का तो आधार केवल छल – लोभ – स्वार्थ विशेष ही हैं । सत्य में तो ऐसी घटनाओ – युक्तियों का तो कल्पना में भी कोई अस्तित्व ही नंही हैं ...! लेकिन फिर भी बड़े धूम-धड़ाके से इसे जपा-मनाया जा रहा हैं । एक बात सदा ध्यान रहे किसी भी नतिजे पर पहुँचने से पहले कि सृष्टि की हर शह केवल झूठी ही हैं प्रत्येक काल विशेष में – उसे तो कलपना में भी जन्म और मृत्यु का ही रोग विशेष लगा हुआ हैं निरन्तर । आप अपनी अनमोल और कीमती रास पूंजी   अर्थात प्राण शक्ति   विशेष आजीवन अन्नत काल से अन्नत जन्मों विशेषों में किस पक्ष विशेष पर खर्च-निछावर विशेष करते आ रहें हैं ...? सृष्टि की ही किसी मोहीत कर देने वाली मान-सम्मान और चमक विशेष से भरी झूठी और केवल झूठी मिट जाने वाली किसी महान से महान्तम उपलब्ध शह विशेष पर अथवा केवल और निश्चित – अटल प्रत्येक काल विशेष में भी अड़ोल-महा अन्नत सदा से प्रत्यक्ष रहने वाले सत्य विशेषो पर ...?

       यह सवाल विशेष आप ने केवल स्वंय से ही पूछना हैं और खुद ही इस का जवाब विशेष भी देना हैं पूरी ईमानदारी से – क्योंकि आप के सुख अथवा दुख का समाधान भी इसी जावाब विशेष में ही छुपा हुआ हैं ...! क्योंकि समस्त A से Z दुखों का आधार संसार की प्रत्येक छोटी से छोटी – से ले कर बड़ी से बड़न्तम महान उपलब्धियां विशेष ही हैं ...! जो जल्दी ही निरन्तर मिट – लुप्त विशेष हो जाने वाली हैं और आप फिर से एक बार कंगले ढ़ोल पीटते हाथ में कटोरा लिये भीख मांगते नज़र आ जाने वाले हैं – यकीन जानना कोई भीख भी देने वाला नंही मिलेगा – क्योंकि आज सामने वाला सम्पन्न विशेष भी अपनी रास पूंजी कंही और अपने किसी महान उद्देश्य-उपलब्धी विशेष हेतु – पर खर्च करने हेतु निरन्तर व्यस्त विशेष हैं । ठीक वैसे ही जैसे आप भी कभी इसी तरह से निरन्तर वयस्त विशेष थे ...?

       भिखारी का भाव हैं सत्य का अंश केवल सत्य रूपी आत्मा का अन्नत काल तक अन्नत जूनों विशेषो में बार-बार जन्मता और मरना फिर अन्नत नर्को विशेषो का बार-बार भ्रमण करने हेतु नई-नई अन्नत ईच्छाओं – कामनाओं को जन्म दे कर उन्हे फिर पूरा करने हेतु अपनी समस्त रास पूंजी रूपी प्राण शक्ति विशेष को अनेक ढ़गों विशेषो द्वारा खर्च – लुटाना – न्योछावर विशेष करना जान – सोच – विचार कर स्वंय को छल – प्रपन्च द्वारा श्रेठ साबित विशेष करते रहना । इस मृग मरीचिका रूपी झूठ विशेष का आप को कभी भी अन्त विशेष मिलने वाला नंही हैं ...!

       फिर किस प्रार्थना – कर्म – काण्ड़ रूपी धर्म – मत – गद्धी – गुरू सतगुरू तीर्थ – नाम – अमृत इत्यादि से आप को शांती अथवा मुक्ति की कल्पना का विचार भी अनुभव हो सकता हैं ...?

       आप किसी भी पक्ष विशेष में खड़े हैं आप को मुबारक ...! बस इतना ध्यान विशेष रहें आप की प्रत्येक सोच अथवा खर्च विशेष का नतिज़ा विशेष भी घौर निश्चित विशेष ही हैं – इस का मात्र एक छोटा सा जर्रा विशेष भी बदलना तो दूर रहा – हिलना या हिलाना भी केवल और केवल प्रत्येक काल अथवा स्थिती विशेष में भी केवल मात्र असम्भव ही हैं – स्वंय सत्य के लिये भी क्योंकि यही उस सुख के सागर की निरन्तर रज़ा विशेष भी हैं .....?

Ø एक ऊँकार नमौः परम चेतन सत्ताये   तेरी रज़ा में नमः समस्त सृष्टी का कल्याण होये 

             

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