19. हे मूर्ख ( चालाक प्राणी ) ...!  केवल एक छोटा सा विचारिक सूक्ष्म मानसिक ब्लातकार विशेष भी – समाज के किसी भी व्यवहारिक अंग विशेष का – व्यवहारिक निश्चित नतिजा विशेष – अनन्त काल तक अनेक बार – बारम्बार तेरे अपने निजि विशेष पिछवाडे को ही भुगतना पडेगा ...!  ये नतिजा तो तेरी अपनी इन महान – महान करतूतों का निकल ही चुका हैं और तुझे गले लगाने के लिये ही केवल तडप विशेष रहा हैं बडी बेचैनी से और लगातार तेरी और बढता हुआ तेरे साथ फोटो खिचवाने को बेताब हैं ...!  

अब आगे जो भी घटेगा तेरे अपने निजि विशेष चमकदार मटकने वाले पिछवाडे विशेष में ही पूरी तरह से सम्पन्न विशेष होगा – निरन्तर बारम्बार नन्तकाल तक ...!  अब सोच आगे क्या – क्या होने वाला हैं ?  लाख यत्नों के बाद भी तुझे अपने इन नतिजों को चूमने – चाटने के लिये मज़बूर होना ही पडेगा अनन्त – काल के बाद भी पूरी तरह से हज़म विशेष करने हेतु ...!  अब तू केवल लाट्री का इंतजाम कर सकता हैं तथा चीखने – चिल्लाने कि तुझे पूरी तरह से छूट विशेष हैं बोनस के रूप में – ये अलग बात हैं कि तेरे इन प्रेम – प्रलाप विशेष को सुनने अर्थात दाद देने वाला कोई भी नंही होगा ...!

पूरी सत्ता विशेष भी तेरी मदद करने में असमर्थ विशेष ही हैं फिर तेरे ये नाम – अमृत - डेरे – स्थान – गुरु – मन्त्र – कर्म काण्ड महान दुर्लभ विशेष – विशेष सभी प्रभु के बाप सहित मिल कर के भी तेरी इस कमाई हुई अनन्त ब्लातकारी नतिजों रूपी गिन्ती में से केवल एक गिन्ती कम करने में भी केवल घौर आसमर्थ विशेष ही होंगे अपने अकथ अनन्त विशेष – विशेष महान प्रयासो के बाद भी ...!  ये तुरन्त विचार कर गांठ बाँध ले ...!

यह विधि का विधान हैं आद से निरन्तर कार्यरत और आगे भी सदा रहेगा प्रमाणिक तौर पर ...! जिन – जिन महान करतूतों गुप्त की तू कब्र बना कर भूल चुका हैं – यकीन जान विधि की नज़र विशेष में पूरी तरह से चेतन – जागरूक – प्रफुलित विशेष हैं ...!  और कुलबुलाती हुई ईन्तजार कर रही हैं , उस घडी का – कि कब तेरी ये बनाई हुई कब्र विशेष गुप्त फटेगी और ये भूत की तरह तुझे चिपट जायेगी , अपने हृदय के चमतकारों को तुझे अनुभव विशेष करवाने हेतू ...!

क्योंकि हर जर्रा पूरी तरह से विधि की जर रूपी घौर पकड़ विशेष में हैं निरन्तर आवश्यक रूप से । विधि के नियम से बाहर विचार रखने वाला भी अपराधी हैं , लेकिन उस से भी बड़ा दोषी वो जीव हैं जो सृष्टि में विशेष तौर पर मनुष्य जाति को गलत दिशा अथवा गुमराह करता हैं या उस प्रक्रिया का साधन अथवा सामान विशेष बनता हैं । याद रख चतुर प्राणी प्रभु दरबार का सबसे बड़ा दोषी यही इज्जतदार – धर्मात्मा महान पुरूष ही हैं – जिस के लिये अलग से विशेष अनुभव करवाने वाले विकराल चैम्बरों विशेषो का ईन्तजाम किया गया हैं विशेष – विशेष आवश्यक साधनों सहित ...!  

साक्षरता आवश्यक हैं जानकारी तथा मार्गदर्शन हेतु - मनुष्य  जन्म अनमोल हैं – उसे समझना बहुत जरूरी हैं - कबीर सूता क्या करे – जागन कि कर चौंप । ये दम हीरा - लाल हैं – गिन – गिन गुर ( केवल रागमई प्राकाशित आव़ाज विशेष ) को सौंप !  कहता हूं – कहे जात हूं – कँहू बजावत ढौल । स्वांसा बिरथा जात हैं – तीन लौक का मौल ...!   और आप इतने चतुर हो कि अपनी निजी अनमोल कीमती प्राण रूपी सम्पति विशेष को दोनो हाथों से कहां – कहां और कैसे – कैसे लुटा विशेष रहे हो – निरन्तर मोह – माया के नशे में चूर – डुबकियां विशेष लगाते हुऐ भ्रमण – विशेष महान करते हुऐ लगातार केवल दिवालिया विशेष हो जाने हेतु ही ...!  जब कि केवल एक प्राण भी अधिक – तीनों लोकों की कुल जमा पूंजी चुका देने पर भी प्राप्त होना केवल धौर असंम्भव विशेष ही हैं प्रत्येक काल में निश्चित रूप से ...!  मनुष्य जन्म का प्रत्येक पल पूरी तरह से जागरूक हो कर चौकीदारी करने हेतु ही हैं कि प्रत्येक प्राण ठीक दिशा में केवल आवश्यक सीमित पदार्थ विशेष पर ही खर्च हो – ताकि मनुष्य जन्म की सफलता को जीते जी अनुभव किया जा सके अर्थात अपने आधार का व्यवहारिक बोध विशेष – जिस के लिये तुझे मनुष्य जन्म विशेष मिला हैं  अनन्त तपों विशेषों को पूरी तरह से सम्पन्न विशेष करने के बाद   ...!

और ये सफलता तुझे केवल अपने निजि शरीर विशेष में ही उपलब्ध होगी इसे हमेशा याद रख । बाहर न आज तक किसी को कुछ मिला हैं और न ही आगे कभी किसी को ये मिलेगा ...!  यही विधि का वैधानिक आवश्यक सच विशेष हैं ।

सुख – दुःख अथवा प्रभु के मिलने न मिलने का फैसला तेरे अपने निजि निरंतर व्यवहारिक सोच रूपी मर्यादित व्यवहार विशेष से जुडा हुआ हैं । और ये मर्यादित व्यवहारिक कर्म विशेष केवल तुझे ही कमाना हैं और वो भी केवल तुझे अपने ही निजि जीवन विशेष में – लगातार आखिरी प्राण के खत्म हो जाने से पहले तक । यही अगले जन्मों का भाग्य विशेष हैं , तेरे स्वंय का कमाया हुआ अथवा सदा के लिये जन्म – मरन से मुक्त हो जाना ...!

एक बात निरन्तर याद रख कुछ भी कमाया हुआ कभी भी किसी भी काल में किन्ही प्रयत्नों विशेषों से भी – आन्शिक रूप से भी बदलना तो दूर रहा – केवल हिलाना भी घौर असम्भव विशेष ही हैं यकिनी तौर पर ...!

साक्षरता का अर्थ अपने अधिकार और कर्त्वयों का पूरी तरह से जागरूक व्यवहारिक विवेकशील बौध विशेष होना हैं । न की केवल लोभ – स्वार्थ सहित अपनी निजि वासनाओं को पूरा करने हेतु उन का दुरप्योग । इस वैचारिक आवश्यक बौध विशेष के अभाव में विधि की नज़र में आप केवल मूर्ख यानि निरक्षर अर्थात मुर्दा रूपी केवल ज़ीरो विशेष हो – फिर चाहे ज़िन्दगी भर आप कितने ही चालाक – सफल – वैचारिक – प्रोफेसर – जानकार – सत्संग करने वाले गुरु – सत्गुरू – डिग्री होलडर – सफल व्यापारी ईत्यादि – वगैरह –वगैरह महान नितिज्ञ – धर्मात्मा ही क्यों न कहलाये ...!  विधि की नज़र विशेष में तो आप केवल एक बडे महान गोल से ज़ीरो विशेष ही रहेंगे – और इसी से आपका मूल्याकंन किया जायेगा  ...!  

इसीलिये ऐसा कम मूले न कि जै – जिस अन्त पछोताईये ...!  अर्थात करने से पहले तो तुझे पूरी तरह से छूट यानी के आज़ादी हैं – लेकिन एक बार तूने कुछ कर दिया तो फिर नतीज़ा तो प्रत्येक व्यवहारिक सोच का निश्चित विशेष ही हैं । तुझे तो केवल विशेष भुगतना मात्र ही हैं । अतः कुछ भी सोचने से पहले अपने पिछवाडे विशेष का ख्याल अवश्य कर लिया कर – क्योंकि तपना – जलना – फटना इत्यादि वगैरह – वगैरह तो इस बेचारे चूतड विशेष में ही पूरी तरह से सम्पन्न विशेष होना हैं – और इस बेचारे के पास तो जुब़ान भी नहीं हैं – अगर कहना भी चाहेगा  कुछ भी , कूँ – कूँ तो कैसे और किस भाषा में किसे कहे सुनायेगा ... ?  बेचारा निसहाय पिछवाडा चालाक विद्वानों विशेषों का ...!

                                                                       

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