![]() 28. ONE NOTE:- कुछ
विशेष महान
आत्माओं के
अंह रूपी कृत
विशेष के कारण
इस चल रही
कल्याणकारी
क्रिया विशेष में
प्रत्यक्ष
रूप से बाधा
विशेष उत्पन
कर दी गयी .....! जिस
कारणवश इस
समस्त योजना
विशेष को
स्थगित विशेष
कर दिया गया
सदा के लिये तथा
“ मुख्य शब्द ”
विशेष सीमित
विशेष हो गया
चार कोने तथा
विशेष दायरे
विशेष तक .....! जब
कि इस से
अनन्त गुना
अधिक वह “ शब्द
विशेष ” पहले
से ही
व्यवहारिक
विशेष हो चुका
था प्रत्यक्ष
व्यवहारिक
रूप से .....! जिस
का एक कण
विशेष
प्रतिलिखित
हैं आगे जानकारी
के तौर पर .....! इन
आत्माओं
विशेषो के
कारण यदी हानी
विशेष हुई हैं
इस चल रही
सत्ता विशेष
को तो एक लाभ
भी प्रत्यक्ष
हुआ हैं .....? अर्थात
जो “ गैप(gap) विशेष ”
हैं इस
प्रत्यक्ष
लिखित विशेष
में उस की भरपाई
हेतू एक
आडियो-वीडियो
रूपी
साफ्टवेयर
विशेष
प्रत्यक्ष
उपलब्ध विशेष
किया जायेगा
शीघ्र ही –
प्रत्येक
जर्रे विशेष
के लिये
प्रत्यक्ष “
आइने विशेष ”
के रूप में –
ताकि वो स्वंय
को तीनो कालों
विशेष में
अपने किये गये
महान-महान
कृत्यों रूपी
ब्लातकारों
विशेषो को
प्रत्यक्ष
अनुभव विशेष
कर सके – अपने
मनुष्य जन्म
विशेष के
अधिकारिक तौर
पर तथा कमाये
गये अपने
महान-महान
नतिजों
विशेषो को
प्रत्यक्ष
भुगतने हेतु
कुछ विशेष- विशेष
तैयारी विशेष
कर सके बिना
किसी भी “ संक्षय
विशेष ” के .....! पुत्र-पैगम्बर-देवी-देवता-गुरू-गद्धी-पंथ-धर्म
इत्यादी
महान-महान
द्वारा किये
गये अथवा इन
नामों की आड
में किया गया
अथवा किया जा
रहा प्रत्येक
“ कृत्य विशेष ”
नज़र अर्थात
पकड़ विशेष
में हैं क्योकि
यह सब
परमेश्वर की
आड अथवा नाम
विशेष पर किया
जा रहा हैं
जिस का एक ही
नतीज़ा विशेष
प्रत्यक्ष
उपलब्ध विशेष
हुआ हैं यानी
के यह सृष्टि
एक “ चकला विशेष
” हैं तथा
प्रभू एक
दुर्लभ
आवश्यक “रण्डी
विशेष ” .....! जब
जिस ने चाहा
इस रण्डी
विशेष को नचा
लिया तथा अपनी
वासनाओ-कामनाओ-लोभो-स्वार्थों
को पूरा करने
का आवश्यक
सामान विशेष- विशेष
–“महानता”
विशेष का –
समेट लिया और
फिर रण्ड़ी
विशेष को
तिज़ोरी विशेष
में कैद विशेष
कर चम्पत
विशेष हो गये .....!
चिन्ता मत
करो पहला कहर
उस अविनाशी सत्ता
विशेष पर ही
गिरने वाला
हैं - जो
स्वंय को उस
का “ अधिकारी विशेष
” बना - मुक्त
विशेष हुऐ
बैठा हैं “ निश्चिंत
” तथा दर्शनों
में मुक्ति
विशेष- विशेष
बांट रहे हैं
भूतो-प्रेतो
की भांती दौड-दौड
कर लुप्त
विशेष होते हुऐ
.....! यंहा के
नर्को विशेषो
के कुण्ड
विशेष प्रत्यक्ष
कर स्वंय
मुक्त विशेष
हैं .....! क्या
सचमुच .....? ये आने
वाला समय
प्रत्यक्ष
साबित विशेष
करेगा
व्यवहारिक
रूप से “ शीघ्र
ही ” ।
इस कमाई और
खर्च से बधी
सृष्टि विशेष
में आप को जो
कुछ भी करना
था या हैं –
केवल और केवल
अपने ही स्वंय
के निजी नाम
विशेष के अधीन
– किसी भी
दूसरे के नाम
के अधीन नंही –
कभी भी भूले
से भी नंही –
फिर प्रभू के
नाम विशेष पर
तो कदापी भी
बिलकुल ही
नंही .....! आप के
मुल्क में कोई
भी साधन
सम्पन्न कुछ
भी चैरिटी
विशेष चलाता
हैं तो केवल
अपने ही नाम
विशेष पर – न कि
अधिकारिक
राजा अथवा
सरकार विशेष
के नाम पर .....! प्रत्येक
उपलब्ध
प्रत्यक्ष
जर्रा विशेष
उस “ परम चेतन
सत्ता ” विशेष
का ही अंश
अर्थात केवल
चेतन स्वरूप
विशेष ही हैं .....!
जड़ जैसी कोई
भी कल्पना ही
नंही हैं
अर्थात चेतन
से केवल चेतन
ही उपलब्ध
विशेष हो सकता
हैं – फिर जड़
विशेष के लिये
मैटीरियल
कंहा से तथा कैसे
उपलब्ध विशेष
होगा जबकि उस
एक परम चेतन सत्ता
विशेष के
अतिरिक्त और
कुछ हैं ही
नंही .....! फिर
किसी को कुछ देने-लेने-करने
अथवा मिटाने
या
प्रत्यक्षता हेतू
उसे किसी की
भी आवश्यकता
कैसे और क्यों
कर हो सकती
हैं .....?
प्रत्येक सूक्ष्म
से भी सूक्ष्म
अमर्यादित
कृत्य विशेष
के बदले में
जो कुछ भी आप
को पलस विशेष
के रूप में
उपलब्ध विशेष
हुआ हैं अथवा
प्रमाणिक तौर
पर दीख विशेष
रहा हैं – वो
केवल और केवल
आप का ही
पिछले समयों
विशेषो में
किया गया
मर्यादित
दुर्लभ आवश्यक
कृत्यों
विशेषो का ही
नतिज़ा विशेष
हैं – जो कोई
बड़ी ही
चालाकी से आप
के समक्ष
उल्टे रूप में
प्रत्यक्ष
विशेष कर –
बड़ी ही सफाई
से आप को
भ्रमित विशेष
कर आप का ही
कमाया हुआ
रिज़र्व
दुर्लभ
आवश्यक विशेष
साफ विशेष
करता जा रहा
हैं और फिर
जीरो विशेष होते
ही बडे ही
कमीने तथा
तड़पाने वाले
ढंगो विशेषो
से आप को बालो
विशेषो से पकड
कर घसीट विशेष
ले जायेगा तथा
सदा के लिये
आप को विशेष- विशेष
महान-महान आप
के ही कमाये
हुऐ चैम्बरो विशेषो
में दफन विशेष
कर देगा – सफाई
विशेष- विशेष
महान करने
हेतू .....! और आप
हैं कि निरन्तर
दुर्लभ सलग्न
विशेष हैं
दूसरो की ही चमड़ी
विशेष- विशेष
उतारने हेतू
अथवा मुक्ति
प्रदान के महान-महान
कार्यो को
विशेष- विशेष अन्जाम
विशेष देने
हेतू .....! “
सुख ” केवल और
केवल “
मर्यादा विशेष
” तक ही सीमित
विशेष हैं –
प्रत्येक
सूक्ष्म से भी
सूक्ष्म
विचारिक अथवा
व्यवहारिक “
अमर्यादा ”
केवल और केवल “
दुख विशेष ” की
ही जननी विशेष
हैं –
प्रत्येक काल
में प्रत्येक
कैसी भी
स्थिती विशेष
में भी – केवल
तड़पाने वाले
दुखों विशेषो
का ही दुर्लभ
आवश्यक साधन
रूपी सामान
विशेष हैं “
महान-महान ” .....!
अब आप स्वंय
ही अपने “
गिरेबान विशेष
” में झांक कर
देख लो और खुद
से ही विचार
कर फैसला कर लो
कि आप की
स्थिती कौन से
“ पक्ष विशेष ”
की हैं – और हैं
तो कितनी हैं .....?
जानकारी हेतू
आप को बता दे
कि ये
सॉफ्टवेयर तो
निरन्तर हज़म
विशेष हो रहा
हैं और आने
वाले सॉफ्टवेयर
विशेष बहुत ही
समर्थ विशेष
हैं – और उन में
आप की स्थिती
विशेष
महान-महान
केवल धूल
विशेष तक ही
सीमित विशेष
हैं क्योंकि
इस अनन्त काल
महा सृष्टि
चक्र में आप
ने केवल और
केवल यही साबित
विशेष किया
हैं कि आप
कितने ही साधन
सम्पन्न
क्यों न किये
जाओ – आप तो
केवल निकृष्ट
और कमीने ही
साबित विशेष हुऐ
हो अर्थात “ सत ”
से चल कर आप “ कल
” को ही
प्रमाणिक रूप
से साबित
विशेष करते आये
हो और फिर
मजबूरन इसे
मिटाने की तथा
सफाई विशेष
महान-महान
करने की ही “ नोबत
विशेष ”
प्रत्यक्ष
करने के लिये
मज़बूर विशेष
होना ही पड़ता
हैं । अर्थात
आप सभी
महान-महान के
मुक्ति
कार्यक्रम प्रत्येक
काल में केवल
विफल विशेष ही
साबित होते
हैं .....! विधी
विशेष
प्रत्येक
जर्रे विशेष
के निजी कृत्यों
विशेषो
द्वारा
उत्पन्न
नतिजो विशेषो
से बधी
निरन्तर
वैधानिक रूप
से कार्यशील
विशेष रहती
हैं .....! तथा इस
में किसी भी
महान से
महानतम का
सूक्ष्म सा भी
मानसिक
हस्तक्षेप
केवल और केवल “ दण्डनीय
विशेष ” ही
साबित होता
हैं प्रत्येक
काल में .....!
|